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Showing posts from 2015

माँ मेरी अब बहुत खुश रहती है

बहुत दिन बीते... कुछ महीने कुछ साल माँ मेरी अब बहुत खुश रहती है   उसका वो सैमसंग का मोबाइल   उसके साथ ही रहता है बेटे जैसा वो बड़ा भी नहीं होता रोज सुबह चार्ज करना... फिर उँगलियों से साफ़ करते रहना नजरों के करीब रखना वो परेशान भी नहीं करता पड़ा रहता है वहीँ जहाँ रख दो उसे कभी कभी बजता भी है प्यार से और हाँ तब उससे बेटे की आवाज़ भी आती है। - Ajayendra Rajan   ‪#‎ Ma‬

कलाम को आखिरी सलाम

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वो जा रहा है घर से जनाजा बुजुर्ग का आँगन में एक दरख़्त पुराना नहीं रहा... कहानी ख़त्म हुई और ऐसी ख़त्म हुई कि लोग रोने लगे तालियाँ बजाते हुए... हर किसी के अपने कलाम इसे कहते हैं नेता, इसे कहते हैं इंसान, इसे कहते हैं राष्‍ट्रपति, देखो फेसबुक और ट्विटर पर हर पोस्‍ट बता रही है कि जिंदगी के किसी न किसी पल हर शख्‍स की यादों में कलाम जीवित हैं, कोई उनके साथ सेल्‍फी पेश कर रहा है, तो कोई उनसे मुलाकात के पल को शब्‍दों में पिरो रहा है, हर किसी के पास अपने अपने कलाम हैं. सच में आप ही हैं देश के आम इंसान के राष्‍ट्रपति, नेता. उम्‍मीद है हम उनकी बातों सीखों को अपने जीवन में अमल में लाएंगे, यही सच्‍ची श्रद्धांजलि होगी. 

मोदी का स्‍मार्टनेस और सफलता हासिल करने का फलसफा कहीं खुशियों से दूर न कर दे!

इकोनॉमिक टाइम्‍स में आज ये आर्टिकल पढ़ा। अच्‍छा था। पूरा पढ़ा तो धीरे-धीरे एहसास हुआ कि बचपन से हम इन्‍हीं बातों के बीच ही जीते आए हैं। घर में कुछ ऐसे ही सुनने को मिलता रहा- बेटा तुम्हारा जिसमें मन लगता है, वही काम करना, बेटा दूसरों को प्‍यार दो, बड़ों को सम्‍मान, छोटों को खूब खुश रखो, गरीब को कभी खाली हाथ लौटने मत देना, अनुशासित रहो, नियमित रहो, चाहे कुछ भी हो जाए अपना नियम कभी मत तोड़ो। लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ती गई, इन बातों को हम पीछे छोड़ते जा रहे हैं। प्रैक्टिकल बनने के दौर में दौड़ लगा रहे हमारे जैसों के लिए ये आर्टिकल सोचने को मजबूर कर रहा है कि खुश होने का सार तो हर भारतीय बचपन से ही जानता है फि‍र क्‍यों उसे पीछे छोड़ता जा रहा है। हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी स्‍मार्ट वर्किंग और सफलता हासिल करने के नित नए नुस्‍खे बताते हैं। लेकिन क्‍या हमने ये कभी सोचा है कि किस विकास की दौड़ में शामिल हो चुके हैं हम? जिस स्‍मार्टनेस और सफलता को पश्चिम ने हासिल कर लिया और अब अंग्रेजी में उसके साइड इफेक्‍ट हमें बयां कर रहा है, क्‍या वही विकास हमें चाहिए। हम अपने बच्‍चों में वही स्‍मार्टन

क्‍या वक्‍त आ गया है आरक्षण व्‍यवस्‍था की समीक्षा करने का?

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हिन्‍दी फि‍ल्‍मों के दिग्‍गज कलाकार धर्मेंद्र खुद जाट परिवार से ताल्लुक रखते हैं और पिछले दिनों आरक्षण को लेकर जाट व गुर्जरों का आंदोलन काफी तेज रहा था, तो इस संबंध में धर्मेंद्र से पूछा गया। इस पर उन्होंने जवाब दिया कि मैं आरक्षण की अवधारणा के ही खिलाफ हूं। मैं उसमें नहीं पड़ता। लोग पता नहीं कब से रिजर्वेशन ही लिए जा रहे हैं। हर कोई मुंह उठाकर आरक्षण की मांग कर रहा है। किस बात का आरक्षण भई। मुझे गुस्सा आता है कि किस बात का रिजर्वेशन भई! अरे आगे आओ, मेहनत करो। अपने हिस्से का सुख-चैन कमाओ। देश को आगे ले जाओ यार। या हमेशा मांगते ही रहना है। धर्मेंद्र का बयान सुनकर आरक्षण समर्थक शायद यही मतलब ज्‍यादा निकालेंगे या तर्क देते नजर आएंगे कि खुद तो जिंदगी में सफल हैं, इसलिए ये बोल फूट रहे हैं। गरीब का दर्द धर्मेंद्र क्‍या जानें?  मैं अपनी बात भी इस सवाल से ही शुरू करता हूं कि गरीब का दर्द आखिर कौन समझ रहा है? कौन उसे रोटी देने की कोशिश कर रहा है? क्‍या आरक्षण? नहीं बिलकुल नहीं, आरक्षण तो इसलिए गरीब का सहारा नहीं हो सकता क्‍योंकि वो तो जाति-धर्म के आधार पर बनाई गई व्‍यवस्‍था है।

जर्मनी का ये 'हिटलर' है, मोदी का दीवाना!

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http://scroll.in/article/734263/germanys-pegida-anti-islamisation-group-says-it-has-a-new-hero-narinder-modi ये खबर स्‍क्रॉल डॉट इन की खबर का हिन्‍दी अनुवाद है।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेशों में फैन्‍स की संख्‍या में तेजी से इजाफा होता दिखाई दे रहा है। इन नए प्रशंसकों में जर्मनी की पेजिदा भी शामिल हो गई है। पेजिदा दरअसल पैट्रि‍यॉटिक यूरोपियन अगेंस्‍ट इस्‍लामाइजेशन ऑफ द वेस्‍ट ग्रुप का जर्मन लघु नाम है। ये संगठन पिछले साल ही बना है। इसी साल जनवरी में इस संगठन शार्ली हेब्‍दो नरसंहार के खिलाफ जर्मनी में एक बड़ा प्रदर्शन किया, इस प्रदर्शन में 25 हजार से ज्‍यादा लोगां ने हिस्‍सा लिया, इनकी मांग थी कि जर्मनी में मुस्लिम अप्रवास पर रोक लगे। इस प्रदर्शन के बाद से ही ये संगठन ने दुनिया में अपनी पहचान बना ली। पेजीदा को देखते हुए जर्मनी के अन्‍य हिस्‍सों में भी मी-टू ग्रुप बनने लगे, जैसे लीपजिग में लेजिदा, बॉन में बोजिदा, फ्रैंकफर्ट में फ्रेजिदा और अमेरिका, कनाडा और यूके में भी इससे जुड़े ग्रुप सामने आने लगे हैं। ये हर सोमवार ड्रेसडेन में लगातार सड़क पर प्रदर्शन कर अपनी उपस

बिना हथियार के संभाले हैं कमान, जय जवान!

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http://www.thehindu.com/opinion/op-ed/fighting-without-equipment/article7306306.ece म्‍यांमार में ऑपरेशन की खबरें आने के साथ ही एक तस्‍वीर एजेंसी से जारी हुई थी, जिसे देखते ही दिल बाग-बाग हो उठा था। बोला- ये हैं हमारे व़ीर जवान। मैंने झट से फेसबुक पर इनकी हैलीकॉप्‍टर के साथ की तस्‍वीर कवर फोटो के रूप में चस्‍पा कर ली। इस दौरान मेरी नजर इन जवानों के हाथों में सजे असलहों पर पड़ी। मैंने देखा, अरे क्‍या बात है, किसी अमेरिकी सैनिक की तरह हमारे जवान भी अत्‍याधुनिक हथियारों से लैस हैं। वाह। शाबाश इंडिया। लेकिज द हिंदू की वेबसाइट पर एक आर्टिकल ने आंखों पर पड़े इस परदे को नोंचकर फेंक दिया और धीरे-धीरे उदासीनता मेरे जेहन में धंसती चली गई। पता चला कि हमारे जवान आज भी दशकों पुरानी इंसास और स्‍नाइफर राइफल लेकर आतंकियों की एके-47 से मुकाबला कर रहे हैं। कई साल की कोशिश के बाद भी हमारी सेना के अफसर हथियार खरीद ही नहीं पा रहे। वाकई दुखद है ये। आप भी पढ़िए इस आर्टिकल के अनुवाद को, जिसे रक्षा विशेषज्ञ राहुल बेदी ने लिखा है- आतंकवाद विरोधी अभियानों में सेना की कुशलता पर आधुनिक छोटे हथियारों की

जवाब दिया है, बराबर दिया है

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http://indianexpress.com/article/explained/both-active-and-effective-a-short-history-of-indian-special-ops/   इंडियन एक्‍सप्रेस का ये आर्टिकल पढ़ा तो एहसास हुआ कि हर देशवासी को इसे पढ़ना जरूर चाहिए, इसीलिए इसका अनुवाद किया है। कुछ त्रुटियां रह गई हों तो माफ कीजिएगा।  24 फरवरी 2000 की उस रात लंजोटे के निवासी एलओसी के उस पार से आर्टिलेरी फा‍यरिंग से बचने के लिए पूरी रात बंकरों में दुबके रहे थे। तड़के उठे तो उन्‍होंने रात भर की शेलिंग में मरनेवालों लोगों को गिनना शुरू किया। चौंकाने वाली बात ये थी कि जो 16 शव उन्‍होंने सड़कों पर बरामद किए, उन पर शेल के निशान ही नहीं थे, बल्कि चाकुओं के निशान थे। 90 साल के मोहम्‍मद आलम वली और युवा दंपति मोहम्‍मद मुर्तजा और कलि बेगम का सिर काट लिया गया था, उनका सिर्फ धड़ ही दिखाई दे रहा था, वह भी बुरी तरह काटा गया लग रहा था। इस घटना में दो साल का अहमद नियाज भी अपनी जान गंवा चुका था। जांच में पता चला कि हत्‍यारे अपने पीछे एक इंडियन मेड घड़ी छोड़ गए थे और एक हाथ से लिखा पत्र- अपना खून देखकर कैसा महसूस हो रहा है? सालों बाद अब पाकिस्‍तान ने दावा किया है

हां, कुछ फोटो फ्रेम भी बचे हैं,

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वो गारा वो पत्‍थर याद है तुम्‍हें  कभी मिलके हमने जोड़ा था  आशियाना बनाया था  वो तस्‍वीर याद है तुम्‍हें  बड़ी खुशी से खिंचवाई थी हमने  वो घड़ी जो  उस साल मेले से खरीद के लाई थी  आज भी टंगी है, मगर रुक गई है  अब भी उसमें वही समय बज रहा है  जब कहर बरपा था हम पर   तुम चली गईं, सब बिखर गया हां, कुछ फोटो फ्रेम भी बचे हैं,  मगर खाली-खाली से बिखरे-बिखरे से। 

तुम न झेल सकीं और अब हम कैसे झेलें

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हर दर्द, हर थपेड़े साथ झेलते चले आ रहे थे  कुछ तुम झेलती, कुछ हम झेलते  बस यूं ही जिये जा रहे थे  कि एक दिन कुदरत का कुछ यूं बरपा कहर तुम न झेल सकीं और जिंदगी छोड़ गईं  अब हम कैसे झेलें, जिंदगी को कैसे छोड़ें।  

हिट एंड रन केस: कुत्‍ता, सड़क, गरीब, बाप और अभिजीत

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(गायक अभिजीत भट्टाचार्य: कुत्ता सड़क पर सोएगा, कुत्ते की मौत मरेगा. रोड ग़रीब के बाप की नहीं है.) बिलकुल सही अभिजीत जी, रोड किसी गरीब के बाप की नहीं है। सच तो ये है जिंदगी ही गरीब को नहीं मिलनी चाहिए। कहां से आ जाते हैं, कमबख्‍त बेवजह आपके चमकदार शहरों को गंदा करने। उनको तो आपके गाने सुनने का भी हक नहीं क्‍योंकि वो तो आप अमीरों के लिए ही बनाते हैं, वो अलग बात है कि कहीं भी सीडी आादि पर मैं पढ़ नहीं पाता बस कि ये सिर्फ अमीरों के लिए है। आपने सच कहा एक साल आपने भुखमरी में गुजार ा लेकिन सड़क पर नहीं सोए क्‍योंकि तब टेक्निकली शायद आपको पता था कि रोड आपके बाप की नहीं है। एक वाकया याद आया, अखबार की मीटिंग कुछ शहर के व्‍यापारियों से चल रही थी, उनमें से एक व्‍यापारी ने सवाल उठाया कि साहब हम गरीबों के खिलाफ नहीं हैं लेकिन आप ही बताइए जिस जगह हजारों रुपए प्रति स्‍क्‍वाॅयर फि‍ट खर्च कर हम दुकान बनाते हैं, उसमें लाखों का माल लगाते हैं, उसी दुकान के आगे एक खोमचे वाला ऐसे ही खड़ा हो जाता है, जब उसे हटाया जाता है तो वोटबैंक की राजनीति शुरू हो जाती है। कुल मिलाकर हम व्‍यापारी ही पिसते है। इधर स

सलमान को जेल- हम तो खुश हैं माइलॉर्ड, पर क्‍या आप हैं?

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आज हम आपके निर्णय से खुश हैं।  लेकिन सोचिएगा 13 साल लग गए आपको।   दोषी को दोषी साबित करने में,   आपने कॅरियर का करीब आधा हिस्‍सा गंवा दिया।   कभी सा‍ेचिएगा उन रूहों के बारे में,   जो 13 साल आपके कोर्ट रूम में प्रोसीडिंग जीती रहीं।   आज हम आपके निर्णय से खुश हैं,   लेकिन सोचिएगा दिल पर हाथ रखकर,   जब आपने इस निष्‍कर्ष पर पहुंचने में 13 साल लगा दिए, तो मामला अभी आपकी ऊपरी अदालत में जाना है,   उनके पास आपसे ज्‍यादा अधिकार हैं,   वो आपके निर्णय को उलट भी सकते हैं।   पर हम आज आपके निर्णय से खुश हैं, क्‍योंकि हम तो जनता हैं,   जो मिलता है, चाहे जब मिलता है, उसी में खुश हो लेते हैं। ये भी नहीं देखते कि इसमें फायदा हुआ या नुकसान।   पर आपका क्‍या?   सच बताइए आप खुश हैं क्‍या?   क्‍योंकि आप तो माइ लॉर्ड हैं।   हम जनता की तरह बेवकूफ नहीं।  ‪#‎ SalmanVerdict‬  

जेब में खनखनाते सिक्‍कों सी खनकतीं कंचियां

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क्‍या खुदा दुआ कुबूल करेंगे !!!

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क्‍या खूब है ये तस्‍वीर  इंसान ने खींची है  खुद की बनाई दुनिया को निहार रहा है  खुदा की नजर से । एक पूरा शहर झांक रहा है बादलों के बीच से हर गगनचुंबी इमारत में सैकड़ों जिंदगियां बसी होंगीं  हर जिंदगी के अपने सपने, मुसीबत और गम और खुशियां होंगीं  सभी खुदा से दुआ भी कर रहे होंगे  क्‍या खुदा दुआ कुबूल करेंगे !!!

कल्‍लू मरि गए, चुन्‍नी मरि गईं, बेटवा अब भी गरीब

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कल्‍लू मरि गए, चुन्‍नी मरि गईं, बेटवा अब भी गरीब, ननकऊ का बेटवा मंत्री हुई गवा, बेटवा अब भी गरीब,   राधे का भतीजा कलेक्‍टर हुई गवा, बेटवा अब भी गरीब,   ताहिर की चाची मेयर हुई गईं, बेटवा अब भी गरीब,   जानी की बिटिया के शादी हुई गै, बेटवा अब भी गरीब,   गये साल हम पार्टी बदला, पर बेटवा अब भी गरीब, मुला, इस साल फ‍िर पार्टी बदला, पर बेटवा अब भी गरीब, कल्‍लू मरि गए, चुन्‍नी मरि गईं, बेटवा अब भी गरीब।। - अजयेंद्र

अरर्रा के टंटाप पड़ेगा तो सारा राष्‍ट्र यहीं दिखेगा

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चचा चौरंगी- ऐ केतली हियां आओ जरा।  केतली- नमस्‍कार चचा, कैसे हैं आप।   चचा चौरंगी- यू बताअो, का बवंडर मचाए हो।   केतली- कुछ न हीं चचा, क्‍या हुआ।   चचा चौरंगी- एक चिलम रही, ससुरे महंगी किए जा रहे हो, पुल्‍ली अपना समोसा महंगा कर दिहिस है।   केतली- अरे चचा, राष्‍ट्र के लिए थोड़ा सा तो बढ़ाया है देखिएगा हमारा विश्‍व में नाम होगा। चचा चौरंगी- अरर्रा के टंटाप पड़ेगा तो सारा राष्‍ट्र यहीं दिखेगा, पूरे कश्‍मीर के साथ। मुएं, खिलाएं पिलाएं हम और बातें करत हो कोठियों वालों की। 70 साल के हैं, हवाईजहाज बातें हमसे न कीन करो। जाओ लौंडन का समझाओ। चाची से कहते जाना, जरा चाय बना दें। अप्रैल के बाद तो उहै से काम चलाए क पड़ी। बताओ समोसा महंगा कर दिहिस।

जेटली की केटली में यूं उबली चाय

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जेटली की केटली में यूं उबली चाय,  यूं उबली चाय कि मानो दिहिन बस पिलाय , दिहिन बस पिलाय की लल्‍ला कप पे कपड़ा मारो, कप पे कपड़ा मारो तो जरा नमकीन भी निकालो , नमकीन न मिले तो छन्‍नी ही पकड़ाओ,  तनिक तेजी से हाथ चलाओ मियां कि यूं उबली चाय ,  यूं उबली चाय कि कहीं देर न होइ जाए देर न होइ जाए कहत संझा आय गई जेटली की केटली में यूं उबली चाय।    - अजयेंद्र

मोदी, नीतीश और लालू, कमाल है, क्‍या कॉकटेल है पार्टी में

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मोदी- मित्र आप बेवजह ही हैरान परेशान हो गए, मुझसे एक बार बात कर ली होती तो मुख्‍यमंत्री पद से इस्‍तीफा न देना पड़ता।  नीतीश- सही कह रहे हैं आप, मांझी ने बहुत रुलाया।  लालू- अरे का रुलाया, मजे से आप सरकारी बंगले में लेटे रहते थे, अब देखो दू-दू बंगला भकोस लिये हैं। मुख्‍यमंत्री वाला और पूर्व मुख्‍यमंत्री वाला।   नीतीश- हां, तो दोनों ही तो हैं न हम। देखिए मोदी जी समझा लीजिए लालूजी को। मजा ले रहे हैं।  मोदी- अरे जाने दीजिए, न चुनाव के, न वोट के, लालू कुछ नहीं बिना सपोर्ट के।   लालू- सुन रहा हूं मैं, रो जाएंगे आप, आने दो चुनाव, बताएंगे कौन है बाप।  ऐ फोटुआ खींच लिया रे, अब देखो का, का लिखेंगे ई पत्रकार लोग। 

जिंदगी क्‍या है रीजनिंग से कम नहीं मियां

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जिंदगी क्‍या है रीजनिंग से कम नहीं मियां,  आज जो अटल सत्‍य है, कल व़ही पक्‍का झूठ है मियां।   एक नेता ही हैं जो बिना किसी सच-झूठ में फंसे राज करते हैं मियां,   वरना हम तो बस सच-झूठ के फेर में वोट ही डालते हैं मियां। - अजयेंद्र

मैं पीएम इन वेटिंग, ये पीएम, वो पीएम इन वेटिंग, फि‍र ये पीएम

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लालू- मोदी जी आ रहे हैं, बिठाएंगे कहां।  मुलायम- अए पान मंती जी हैं, हमाए साथ ही बैठेंगे औ का।  लालू- ऊ तो ठीक है, देखिएगा ज्‍यादा चिपक न जाएं, पॉलिटिकल सुसाइड हो जाएगा।  मुलायम- ऐ क्‍या लालू जी, रानीति में कोए दोत या दुश्‍मन नहीं होता। आप तो अपने समर्थकों जैसी बात करने लगे।  लालू- हां ऊ तो ठीक है। वैसे भी हमको तो चुनाव अब लडना नहीं है। और आप भी तो-- मुलायम- ऐ ऐसे मौकों पर शुभ-शुभ बोलिए लालू जी। हम 2019 की तैयारी में लगे हैं।  लालू- तो पीएम बैठेंगे, दो पीएम इन वेटिंग के साथ। हाहाहाहा  मुलायम- जादा न खेलिए, तिलक है, बरात नहीं आएगी।  लालू- आप तो बुरै मान गए।

नीतीश कुमार, एक साल, पीएम इन वेटिंग से सीएम इन वेटिंग तक

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अजयेंद्र शुक्‍ला  पहले नीति की दुहाई देते हुए मोदी के नाम पर भाजपा से अलग हुए क्‍योंकि उनका दावा था कि मोदी साम्‍प्रदायिक नेता है। वो अलग बात है कि आडवाणी जिनका गुणगान नीतीश जी करते हैं, इतिहास में मोदी से कहीं ज्‍यादा साम्‍प्रदायिक होने के आरोप उन पर लगे। बहरहाल, लोकसभा चुनाव हुए और लगातार दो बार से बिहार के मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार को परिणामों ने यूं झटका दिया कि पार्टी दो सीटों पर सिमट गई। मोदी लहर थी या और कुछ और पता नहीं लेकिन पार्टी के इस प्रदर्शन से नीतीश आहत से दिखे। एक बार फि‍र उन्‍होंने नीति की दुहाई दी और अकेले ही मुख्‍यमंत्री पद का परित्‍याग करने का निर्णय ले लिया।  कारण बताया कि जनता ने हमें नकार दिया है और इस स्थिति में मैं मुख्‍यमंत्री पद पर नहीं रह सकता। अचानक से उन्‍होंने बिना किसी की राय मशविरा किए अनजाने से नाम जीतन राम मांझी को मुख्‍यमंत्री बना दिया। उनके चयन के पीछे हर जगह उनके महादलित होने को ही आधार माना गया। साथ ही खबरें आईं कि वो नीतीश के येस मैन हैं। नीतीश कुमार ने कभी इस बात का खंडन नहीं किया। जाहिर है खंडन नहीं आया तो खबरें सच ही मानी जाती हैं। उधर