हिट एंड रन केस: कुत्ता, सड़क, गरीब, बाप और अभिजीत
(गायक अभिजीत भट्टाचार्य: कुत्ता सड़क पर सोएगा, कुत्ते की मौत मरेगा. रोड ग़रीब के बाप की नहीं है.)
बिलकुल सही अभिजीत जी, रोड किसी गरीब के बाप की नहीं है। सच तो ये है जिंदगी ही गरीब को नहीं मिलनी चाहिए। कहां से आ जाते हैं, कमबख्त बेवजह आपके चमकदार शहरों को गंदा करने। उनको तो आपके गाने सुनने का भी हक नहीं क्योंकि वो तो आप अमीरों के लिए ही बनाते हैं, वो अलग बात है कि कहीं भी सीडी आादि पर मैं पढ़ नहीं पाता बस कि ये सिर्फ अमीरों के लिए है। आपने सच कहा एक साल आपने भुखमरी में गुजारा लेकिन सड़क पर नहीं सोए क्योंकि तब टेक्निकली शायद आपको पता था कि रोड आपके बाप की नहीं है।
एक वाकया याद आया, अखबार की मीटिंग कुछ शहर के व्यापारियों से चल रही थी, उनमें से एक व्यापारी ने सवाल उठाया कि साहब हम गरीबों के खिलाफ नहीं हैं लेकिन आप ही बताइए जिस जगह हजारों रुपए प्रति स्क्वाॅयर फिट खर्च कर हम दुकान बनाते हैं, उसमें लाखों का माल लगाते हैं, उसी दुकान के आगे एक खोमचे वाला ऐसे ही खड़ा हो जाता है, जब उसे हटाया जाता है तो वोटबैंक की राजनीति शुरू हो जाती है। कुल मिलाकर हम व्यापारी ही पिसते है। इधर से भी उधर से भी। उन्होंने कहा कि मैं ये नहीं कह रहा कि इन्हें उजाड़ दो लेकिन इनके व्यापार और जीवनयापन की व्यवस्था कुछ ऐसे की जाए कि हमारा हित न फंसे।
अभिजीत जी उस व्यापारी को भी दर्द था वो भी जिंदगी जी रहा था, लेकिन उसने अपनी बात इतनी सलीके से रखी कि हमें भी सोचने को मजबूर कर दिया। यहां ये उदाहरण सिर्फ इसलिए दिया कि बात रखने का लहजा, सलीका सीखिए, हो सकता है आप कुछ ऐसी दूरदृष्टि रखे हों, जिस तक हम नहीं पहुंच पा रहे हों कृपया भाषा पर नियंत्रण करें और जो कहना चाहते हैं, कहें। क्योंकि जिस तरह की अभद्र भाषा और अमानवीय सोच का आज आपने परिचय दिया है, यकीन मानिए इसका जवाब मानवीय तो कतई नहीं हो सकता।
एक वाकया याद आया, अखबार की मीटिंग कुछ शहर के व्यापारियों से चल रही थी, उनमें से एक व्यापारी ने सवाल उठाया कि साहब हम गरीबों के खिलाफ नहीं हैं लेकिन आप ही बताइए जिस जगह हजारों रुपए प्रति स्क्वाॅयर फिट खर्च कर हम दुकान बनाते हैं, उसमें लाखों का माल लगाते हैं, उसी दुकान के आगे एक खोमचे वाला ऐसे ही खड़ा हो जाता है, जब उसे हटाया जाता है तो वोटबैंक की राजनीति शुरू हो जाती है। कुल मिलाकर हम व्यापारी ही पिसते है। इधर से भी उधर से भी। उन्होंने कहा कि मैं ये नहीं कह रहा कि इन्हें उजाड़ दो लेकिन इनके व्यापार और जीवनयापन की व्यवस्था कुछ ऐसे की जाए कि हमारा हित न फंसे।
अभिजीत जी उस व्यापारी को भी दर्द था वो भी जिंदगी जी रहा था, लेकिन उसने अपनी बात इतनी सलीके से रखी कि हमें भी सोचने को मजबूर कर दिया। यहां ये उदाहरण सिर्फ इसलिए दिया कि बात रखने का लहजा, सलीका सीखिए, हो सकता है आप कुछ ऐसी दूरदृष्टि रखे हों, जिस तक हम नहीं पहुंच पा रहे हों कृपया भाषा पर नियंत्रण करें और जो कहना चाहते हैं, कहें। क्योंकि जिस तरह की अभद्र भाषा और अमानवीय सोच का आज आपने परिचय दिया है, यकीन मानिए इसका जवाब मानवीय तो कतई नहीं हो सकता।

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