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Showing posts from November, 2013

हटाओ इस तस्वीर को

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कितना बेरहम है ये बाज इतने खूबसूरत खरगोश को यूं बेदर्दी से दबोच रहा है,  हटाओ इस तस्वीर को मुझसे ये देखा नहीं जाता, मैं इंसान हूं मेरे अंदर इंसानियत है मैं मंदी के नाम पर नौकरियां ले सकता हूं, तरुण तेजपाल, आशाराम हो सकता हूं, तलवार दंपति हो सकता हूं, इंसानों पर शराब के नशे में गाड़ी चढ़ा सकता हूं, मगर ये अमानवीय हरकत नहीं कर सकता।

हम अपनी आम सी जिंदगी

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हाथियों की आम सी जिंदगी में एक फोटोग्राफर का जरा सा नजरिया का मिला, देखिए तस्वीर बोलने लगी सोचिए हम अपनी आम सी जिंदगी में ऐसे ही किसी नजरिए को ढूंढ़कर चुटकी भर डाल लें तो कैसा हो। 

उदास लोग मुस्कुराते बहुत हैं

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बताऊं कहानी तुम्हें उदास लोगों की   कभी गौर करना, ये मुस्कुराते बहुत हैं

कोई उसी तकलीफ का कायल दिखता है

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किसी की नजर में ज्वालामुखी की राख से ढकी ये कार है तो कोई कुदरत की इस श्वेत-श्याम रंगोली का कायल है जिंदगी भी तो नजरिए का खेल है बस तुम्हें जो तकलीफदेह लगता है,  कोई उसी तकलीफ का कायल दिखता है।

जिंदगी तू भी क्या जुकाम है

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जिंदगी तू भी क्या जुकाम है,  'दवा' लो तो सात दिन तक खिंच जाती है,  न लो तो हफ्ते भर में खत्म हो जाती है। - अजयेंद्र राजन