जवाब दिया है, बराबर दिया है
इंडियन एक्सप्रेस का ये आर्टिकल पढ़ा तो एहसास हुआ कि हर देशवासी को इसे पढ़ना जरूर चाहिए, इसीलिए इसका अनुवाद किया है। कुछ त्रुटियां रह गई हों तो माफ कीजिएगा।
24 फरवरी 2000 की उस रात लंजोटे के निवासी एलओसी के उस
पार से आर्टिलेरी फायरिंग से बचने के लिए पूरी रात बंकरों में दुबके रहे थे। तड़के उठे तो उन्होंने रात भर की शेलिंग में मरनेवालों लोगों को गिनना शुरू किया। चौंकाने वाली बात ये थी कि जो 16 शव
उन्होंने सड़कों पर बरामद किए, उन पर शेल के निशान ही नहीं थे, बल्कि चाकुओं के निशान
थे। 90 साल के मोहम्मद आलम वली और युवा दंपति मोहम्मद मुर्तजा और कलि बेगम का
सिर काट लिया गया था, उनका सिर्फ धड़ ही दिखाई दे रहा था, वह भी बुरी तरह काटा गया
लग रहा था। इस घटना में दो साल का अहमद नियाज भी अपनी जान गंवा चुका था। जांच में
पता चला कि हत्यारे अपने पीछे एक इंडियन मेड घड़ी छोड़ गए थे और एक हाथ से लिखा
पत्र- अपना खून देखकर कैसा महसूस हो रहा है?
सालों बाद अब पाकिस्तान ने दावा किया है कि लंजोटे में
हुए उस जनसंहार के लिए भारतीय सेना जिम्मेदार थी। इस पर भारतीय इंटेलिजेंस के कुछ
अधिकारियों ने अनाधिकारिक रूप से माना कि ये हत्याएं जम्मू-कश्मीर के डोडा और
राजौरी में लश्करे तोएबा द्वारा हिंदुओं के नरसंहार का बदला थीं।
किसी भी सफल गुप्त ऑपरेशन की तरह ये कहानी भी धुंधली सी
है, इसमें किसी को सीधे-सीधे दोषी ठहरना संभव नहीं है। जाहिर है जिन्हें
लगता है कि म्यांमार में घुसकर मंगलवार को किया गया भारतीय सेना द्वारा ऑपरेशन
ऐतिहासिक है तो लंजोटे की हत्याएं उन्हें एक पल सोचने को मजबूर जरूर कर सकती हैं।
स्वतंत्र भारत में गुप्त युद्ध 1947 के अंत में शुरू
हुआ। देश छोड़ कर जाने वाले अंग्रेजों ने भारत के हथियारों के जखीरे को कई हिस्सों
में बांट दिया था। इंटेलिजेंस ब्यूरो में ब्रिटिश इंडियन पुलिस ऑफिसर कुरबान अली
खान पाकिस्तान चले गए और साथ ही कई ऐसी संवेदनशील फाइलें भी वे ले गए, जिन्हें
ब्रिटिश अधिकारी बर्बाद करने से चूक गए थे। आईबी के लेफिटनेंट जनरल एलपी सिंह
के अनुसार हम एक असहाय राज्य की तरह हो गए थे, जिसके पास खाली रैक और अलमारियां
थीं। स्थिति ये थी कि 1947-48 के युद्ध की शुरुआत में आए पहले रेडियो इंटरसेप्ट
को समझने के लिए दिल्ली स्थित मिलिट्री इंटेलिजेंस निदेशालय के पास जम्मू और कश्मीर
का नक्शा तक नहीं था।
पाकिस्तान को पता था कि वह पारंपरिक सैन्य मामलों में
भारत से जीत नहीं सकता था। खान का सिद्धांत उसने लागू किया, जिसमें उप-पारंपरिक
आक्रामक युद्ध की नीति अपनाई गई, क्योंकि इससे पाकिस्तान को अपनी रक्षा करने में आसानी थी। 1947 में पाकिस्तान ने भारत
के साथ वही किया, जिसे जवाहर लाल नेहरू ने बाद में एक अनौपचारिक युद्ध कहा। पाकिस्तान ने कश्मीर और पूर्वोत्तर के राज्यों में आतंकी संगठनों को प्रायोजित करना
शुरू किया। आमतौर पर नेहरू मानते थे कि इस तरह के हमले के खिलाफ पारंपरिक सेना का
इस्तेमाल किया जाए। उसी रास्ते पर चलते हुए इंदिरा गांधी ने मिजो के उग्रवादियों को नेस्तोनाबूत करने के लिए मार्च
1966 में हवाई ताकत का इस्तेमाल किया, जिसमें ऐजवाल में
दर्जनों नागरिक भी मारे गए।
1962 के युद्ध के दौरान भारत की गुप्त क्षमताओं में
तेजी से इजाफा हुआ। इसमें अमेरिका के तकनीकी सहयोग और ब्रिटेन के ट्रेनर्स ने महत्वपूर्ण
योगदान दिया। अमेरिका की सहायता से नई बनी रॉ ने चीन को लक्ष्य बनाते हुए गहन जासूसी
की क्षमता विकसित कर ली थी। 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ उसने इस नई तकनीक का खूब
इस्तेमाल किया।
इस्टैबलिशमेंट 22 द्वारा मेजर जनरल सुरजीत सिंह उबन की
कमांड में ऐसा ही एक गुप्त युद्ध आज के बांग्लादेश में लड़ा गया। सीआईए द्वारा
तैयार किए गए तिब्बती योद्धाओं का इस्तेमाल अमेरिकी सहायता प्राप्त पाकिस्तानी
सेना के खिलाफ किया गया। बाद में इस्टैबलिशमेंट 22 कर्मियों ने ही सिक्किम के भारत में
विलय में सहायता दी, तमिल उग्रवादियों को ट्रेन किया और म्यांमार में चीन समर्थित
शासन के दौरान विद्रोहियों को ट्रेनिंग दी।
गुप्त अभियानों में भारत के लिए अनुभव काफी परिवर्तनकारी रहे। 1980 की शुरुआत
से खालिस्तान उग्रवादियों को आईएसआई से हथियार मिलने लगे। राजीव गांधी ने बदले का
आदेश दिया। रॉ ने दो ग्रुप बनाए जिन्हें काउंटर इंटेलिजेंस टीम-एक्स और काउंटर
इंटेलिजेंस टीम-जे के रूप में जाना जाता है। पहले का लक्ष्य पाकिस्तान को आमतौर
पर टार्गेट करना था, वहीं दूसरे ग्रुप का लक्ष्य खालिस्तानी ग्रुप को टार्गेट
करना था। इसके बाद खालिस्तान की ओर से भारत के शहरों में किए गए हर हमले का बदला
लाहौर या करांची में हमले कर के लिया गया। रॉ के पूर्व अफसर बी रमन ने 2002 में लिखा है कि हमारे
जवाबी हमलों की क्षमताओं के कारण ही आईएसआई को पंजाब में दखलंदाजी के अपने कदम से पीछे हटना पड़ा।
एक चर्चित घटना है, आज के नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर अजित
डोवाल के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने खालिस्तान के उग्रवादी सुरजीत सिंह
पेंटा के नेटवर्क में एक आईएसआई ऑपरेटिव के तौर पर पैठ बना ली थी। कहानी के अनुसार
डोवाल स्वर्ण मंदिर में दाखिल हुए और उन्होंने फर्जी विस्फोटकों को वहां बांध
दिया ताकि जब 1988 में ऑपरेशन ब्लैक थंडर शुरू हो तो पेंटा धमाका न कर सके।
इंदिरा गांधी द्वारा सैन्य बलों के क्रूर उपयोग के असर
को कम करने के लिए डोवाल ने इसी तरह से 1980 में मिजो उग्रवादी संगठनों के नेटवर्क
में भी पैठ बना ली और उन पर शांति समझौते के लिए दबाव बनाया।
हालांकि इसके बाद आइके गुजराल ने पाकिस्तान के खिलाफ रॉ
के सभी आक्रामक ऑपरेशनों को खत्म कर दिया और उसके बाद पीवी नरसिम्हाराव ने तो
पूर्वोत्तर के सारे ऑपरेशन ही बंद कर दिए। भारत ने अपनी पारंपरिक सेना की
क्षमताओं में इजाफा जारी रखा लेकिन जैसा कि सभी को पता है कि 80 के दशक के अंत में
पाकिस्तान ने न्यूक्लियर हथियार हासिल कर लिया और यह साफ हो गया कि ये तलवार अब म्यान
में ही रहेगी।
तो क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खेल के नियम बदल दिए
हैं? हां भी और नहीं भी। आमतौर पर ये ही समझा जाता है कि भारतीय सेना दुश्मनों के अत्याचार
की शिकार ही रहती है लेकिन सच ये है कि उसने हर हमले का माकूल जवाब दिया है।
म्यांमार में भारतीय सेना ने 1999 और 2006 में बड़े क्रॉस
बॉर्डर ऑपरेशन चलाए। 2009 में उसने पूर्वोत्तर के उग्रवादियों को भूटान से बाहर
करा दिया। इंडियन इंटेलिजेंस सर्विसेज नेपाल, बांग्लादेश और यहां तक कि पाकिस्तान
में भी सफलता से काम कर रही हैं। ज्यादातर क्षेत्रों में आर्मी के बारे में माना
जाता है कि वह बिना प्रचार के ज्यादतियों, अत्याचार के खिलाफ काम कर रही है।
मई 1999 में कैप्शन सौरभ कालिया और पांच सिपाहियों का पाकिस्तानी
सैनिकों ने अपहरण कर लिया। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि उनके शरीर को
सिगरेट से जलाया गया और गुप्तांग कटे-फटे पाए गए। इसके कुछ महीनों बाद आरोप लगा कि जनवरी 2000
में सात पाकिस्तानी सैनिकों को नीलम नदी के पार से
पकड़ लिया गया। पाकिस्तान के अनुसार जब उनकी बॉडी वापस दी गई तो उस पर क्रूर अत्याचार
के निशान थे।
इसके अलावा छोटी-छोटी कई घटनाओं की एक लड़ी सी है। जून
2008 में पाकिस्तान सैनिकों ने पुंछ में एक बॉर्डर ऑब्जर्वेशन पोस्ट पर हमला
किया और एक सैनिक को मार दिया। जवाब में
पाकिस्तानी अधिकारियों ने आरोप लगाया कि 19 जून 2008 को भारतीय सैनिकों ने भट्टल
सेक्टर में पाकिस्तानी सैनिक का सर कलम कर दिया।
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