ankh dokha hai kya bharosa hai


जो दिखता है वो होता नहीं

जो होता है वह दिखता नहीं

भरोसा जिंदगी का फलसफा नहीं

यहां तो धोखा ही सिर्फ सांस लेता है
 


मेरी कब्र पर बरसा के पानी क्या जता रहे हैं आप (खुदा)

क्या ये मेरी प्यासी जिंदगी को गीला करने की कोशिश है



इस रेगिस्तान में भी टायर के निशान हैं

मैं कहां जाऊं कि कम्बख्त इंसान न मिले



शायद इंसान यहा खुदा से यही कह रहा है-

बड़ी कोशिश की तुम्हारी (खुदा) टक्कर लेने की मैंने

हर बार सूक्ष्म साबित कर देते हो

क्यों ऐसा करते हो, हारने वाले को क्या जीत का एक पल भी नहीं दोगे




हर पल जो साथ निभाती है

पैरों के निशान पर चलती चली जाती है

वो बीवी ही तो है

प्रेमिका में कहां मिल पाती है



जरा सी धूप, एक बंदर, ढेर सारे पेड़

मैंनेजमेंट इसी को तो कहते हैं

सबको उसके लायक हक दे दो

बस शानदार प्रेजेंटेशन तैयार



पता नहीं ये लड़ रहे हैं

या प्रेम कर रहे हैं

दोनों शरारत में मशगूल हैं

या ये उनकी बातचीत का तरीका है

सिर्फ एक पल न जाने कितनी सोच बयां कर रहा है

और हम सोचते है कि सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं



इक आग उबलती है जमीं के अंदर

इक आग उबलती है जेहन के अंदर

उस आग के पास शांत खड़ा है अंधेरा
इस आग के पास खड़ा है नया सवेरा


कभी लहरों की ठोकर खाई है तुमने

कहने को सिर्फ पानी

पड़ जाए ठोकर तो याद आ जाए नानी

आंचल में लपेट के पत्थर पे ऐसे पटकेगी

कि कहना भूल जाओगे, इंसान की क्या सानी


दरख्तों के साए में जीना सीखते-सीखते
मैं कब दरख्तों को काटने लगा, पता ही नहीं चला

कोशिश तो थी खुद को बचाने की

पर कब दरख्तों को फंसाने लगा पता ही नहीं चला


लोगों की भीड़ में चलो हम भी छुप जाएं

कि परेशानी को भी ढूढऩे में परेशानी हो जाए



Comments

सुंदर तस्वीरें...सुंदर नज़रिया और सुंदर ब्लॉग. इस अंजुमन में आना ही होगा बार-बार.
Ashish Tripathi said…
Boss, they are really nice photographs.
mini said…
so you anymal lover and write good

Popular posts from this blog

jeene ki wajah to koi nahi, marne ka bahana dhoondta hai

Golden age of Indian mathematics was inspired by Babylon and Greece: Amartya Sen