चकल्लस- आई लव नेचर, आई हेट करप्शन





रोडी- लेओ, दुनिया में आग लगी है और तुम यहां मसाला फाड़े जा रहे हो. 

बिंदास- अबे, आजकल मिलता ही कहां है. दो रुपए की पुडिय़ा थी.
कमबख्तों को रहा नहीं गया. कोर्ट में पेटीशन डाल-डाल के नरक कर दिया. 
मसाले पर बैन नहीं लगवा पाए तो उसके प्लास्टिक पाउच को ही टार्गेट बना लिया. 
कोर्ट ने रोक लगा दी है, प्रोडक्शन बंद हो गया है, अब दो रुपए का मसाला ब्लैक में खरीदना पड़ रहा है. 
हुआ कुछ नहीं, टेंशन किलो भर. मिल जाएं ये प्रकृति प्रेमी तो बताऊं. 

रोडी- अमां, तुम तो हत्थे से ही उखड़ गए. 
बेचारे पर्यावरण बचाने वालों पर क्यों गुस्सा निकाल रहे हो. कह तो वो सही ही रहे हैं. 

बिंदास- अमां खाक सही कह रहे हैं. नेचर बचाओ, प्लास्टिक छोड़ो, कागज यूज करो. 
मेरी गंगा मैया, मेरी गोमती मैया. सब दुकान चलाने के तरीके हैं गुरू. 
घर में खाने को मिल रहा है, कमाई भी ठीक-ठाक ही है तो चलो, थोड़ा बौद्धिक हो जाए. 
आजकल सोशल वर्क से बढिय़ा कहीं नेटवर्किंग नहीं होती. बड़े से बड़ा काम यूं निकल जाता है. 
ज्यादातर अधिकारियों, बिजनेसमैन्स की बीवियां या वो खुद, सोशल वर्क से जुड़े होते हैं. 
भइया- दीदी कह के व्यवहार बना लो, फिर बच्चों के एडमीशन से लेकर ठेके दिलवाओ
 और दाब के कमाओ. तो ये हैं पर्यावरण विद. 
वहीं जो पर्यावरण को लेकर गंभीर है, उनसे तो मैं बस यही कहना चाहूंगा कि भईया. 
पर्यावरण की नहीं, अपनी चिंता करो. 
जिस गंगा मइया, गोमती मइया को बचाने का दम भरते रहते हो. 
एक सैलाब आएगा, औकात बता देगी. पेड़-पौधों की चिंता न करो, जो मकान बनवाया है, उसकी सोचो. 
भूकम्प का एक झटका निपटा देगा. सड़क पे आ जाओगे तो परिवार को सहारा ये मिट्टी ही दे देगी.
प्यार ज्यादा उमड़ रहा है तो जापान घूम आओ.
 प्यार डर में तब्दील होते देर नहीं लगेगी. हैं नहीं तो.

रोडी- अमां, मैं कुछ कह रहा था और तुम कुछ ले उड़े. 

बिंदास- क्या-क्या. 

रोडी- हां, मैं ये कह रहा था कि देखते नहीं मिस्त्र के बाद अब दुनिया जाग रही है. 
लीबिया में भी आम जनता जाग रही है. 
मैं तो कहता हूं कि एक दिन अपना देश भी सड़कों पर होगा. 
भ्रष्टाचार के खिलाफ जो चिंगारी अपने देश में सुलग रही है
 देखना एक दिन ये बदलाव लाएगी. 
लोग सड़कों पर उतरने लगेंगे तो देखना सरकार की हालत खराब होगी. 

बिंदास- लोग सड़कों पर उतरेंगे. अबे बेवकूफ है क्या, क्यों उतरेंगे. 

रोडी- क्यों भ्रष्टाचार के खिलाफ देख नहीं रहा, सब एकजुट हो रहे हैं. 
एक न एक दिन सब उतरेंगे. आखिर कब तक सहें. 
हर तरफ लूट है, कोई भी काम बिना रिश्वत के होता ही नहीं, जिसे देखो लूटने में लगा है. 
करोड़ों रुपए स्कैम में खा जाते हैं, डकार तक नहीं लेते. 
कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं. 
आए दिन रेप और किडनैपिंग की खबर आम हो गई है, खून तो ऐसे होता है, जैसे मजाक. 
सिस्टम को ही कीड़ा लग चुका है.

बिंदास- हममममम....समस्या तो बहुत गंभीर है भाई 
लेकिन ये तो बताओ लोग सड़क पर क्यों उतरेंगे. 

रोडी- अबे, अजीब इंसान हो, ये समस्याएं क्या कम गंभीर हैं? 
बुद्धि है कि नहीं. 

बिंदास- हुंह....बुद्धि तुम्हारे सर में है या नहीं. किसने कहा, भ्रष्टाचार से लोग परेशान हैं. 
किसने कहा, कानून व्यवस्था खराब है. किसने कहा, रिश्वत से कोई परेशान है.
अबे, ये इंडिया है इंडिया. 
यहां जिस बुरी चीज को सब बुरा कहते दिखेंगे, चुपके से उसी का लुत्फ लेते मिलेंगे. 
बड़े दिमागी हैं लोग भइया. 
सिक्स्थ पे कमीशन में चपरासी 19 हजार कमा रहे हैं. 
50 हजार रुपए की तनख्वाह मजाक बन चुकी है. 
और तुम कहते हो, लोग परेशान हैं. 
बड़ी महंगाई से परेशान हो बताओ, खाने में कितना खर्च करते हो. 
साले, शनिवार, सनडे बीवी के साथ रेस्टोरेंट में जाओगे और कहते हो बड़ी महंगाई है. 
घर में दो-दो एसी लगवाए हो और कहते हो, बिजली का बिल बहुत आ रहा है. 
फिर हर महीने 100 रुपए मीटर धीमा करने के लिए खिलाते हो. 
ट्रेन में रिजर्वेशन नहीं हुआ तो, वेटिंग टिकट लेकर कोटा लगाने के जुगाड़ ढूंढ़ते हो, तब भ्रष्टाचार नहीं है. 
मकान सड़क से चिपकाकर बनवा लिए हो, फुटपाथ में कार खड़ी करते हो, भ्रष्टाचार नहींंं है. 
रात में चुपके से बगल के प्लाट में कूड़ा फेंक आते हो भ्रष्टाचार नहीं है. 
बिना हेलमेट या कागज के गाड़ी पुलिसवाला रोकता है तो साहब के शान में खलल पड़ जाती है. 
मानो वहीं सूली पर चढ़ा देंगे. सिपाही कठोर दिखा तो रिश्वत लिए पीछे दौड़ते हो, क्यों गाड़ी सीज नहीं करवाते.
टीटी को रिश्वत देकर ट्रेन में सीट हासिल कर लेते हो. 
बेटे का कान्वेंट में एडमिशन करवाना है तो डीएम से लेकर सीएम तक जुगाड़ लगा डालते हो. 
तब भ्रष्टाचार की याद नहीं आती. साले, सिर्फ बौद्धिक बांटो. 
कोई परेशान नहीं, सब बस दिख रहे हैं. 
हर कोई जिंदगी के मजे ले रहा है और जरा सा पूछ लो तो परेशान दिखने का नाटक कर रहा है. 
लोग सड़कों पर उतरेंगे. बात करते हैं. अबे परेशानी किसको है, जो सड़क पर उतरेगा.

अगर गरीब की बात कर रहे हो तो उसे सुकून कब था, जो अब परेशान होकर सड़कों पर उतरेगा. 
सब बौद्धिक लोग अपनी ब्रांडिंग कर रहे हैं गुरू. 
ये भले फोटो खिंचवाने के लिए मेकअप करके वोट डाल आते हों 
लेकिन इन्हें समझने वाले जो हमारे आपके जैसे लोग हैं, वोट नहीं डालते.
 इस देश में 35 प्रतिशत वोटिंग में गवर्नमेंट बन जाती है. 100 प्रतिशत सड़क पर कैसे उतरेंगे. 
पहले वोट डालना सीखो, अपनी चुनी सरकार बनाओ, फिर सड़क पर उतरना.
 इतनी आबादी है, एक अपने लखनऊ शहर की ही 45 लाख से ज्यादा हो चुकी है. 
उसके अनुपात में बताओ, हत्या, किडनैपिंग कितनी बढ़ी है. 
जिस आबादी को लेकर हमारा देश सीना ताने चल रहा है. 
दूसरे कई देश बैठ जाते. बातें करो तुम बस. भ्रष्टाचार हाय, हाय..... हुड़.

रोडी- तुमसे तो बात करना ही बेकार है. 

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