देर न हो जाए कही देर न हो जाए!!!


वो कहते है मैंने इतना किया उसके लिए
और उसी ने मुझे धोखा दे दिया
एक न एक दिन उसे सबक सिखा के रहूँगा
पर ये पेड़ क्या सोचते होंगे
आँखों के सामने जिन्होंने काटा उनके बंधुओं को
उन्ही को रहत भरी ठंडी छांव दे रहे है ये

अपनी धुन में इतना बेंदाज़ हुआ मैं
की अब छांव ढूंढता हूँ लंप पोस्ट के नीचे

मेरे पिता ने जो बनवाई थी वो दीवार वहीँ है
मेरे बेटे ने जो सजायी थी क्यारी भी वहीँ है
नही है तो बस उस पेड़ की वो छांव
जहाँ कभी घर से गुस्सा के मैं सोया करता

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यह आने वाले कल का सच नजर आता है। आपकी तस्‍वीरों में अगर कैप्‍शन न हो तों प्रभाव शायद दस प्रतिशत ही रह जाए। एक बार‍ फिर प्रेरणा देने वाली तस्‍वीरों और उनके कैप्‍शन के लिए दिन से धन्‍यवाद...

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