बस इतना सा ही तो फर्क है नेकी और छलावे में, पढ़िए एक सच्ची कहानी

एक कॉर्पोरेट कंपनी में प्रोफेशनल व्यक्ति हैं. उनकी कंपनी ने एक बार एक कार्यक्रम आयोजित किया. कंपनी ने अपनी हर शहर की ब्रांच में एक फरमान जारी किया कि किसी भी रविवार सभी इंप्लाई मिलकर अपने शहर के किसी अनाथालय, वृद्धाश्रम आदि का दौरा करेंगे. वहां पूरा दिन बिताएंगे. वहां रहने वाले बच्चों, वृद्धों आदि के लिए कुछ उपहार ले जाएंगे. कोशिश करेंगे कि उनमें खुशियां बांटी जाएं. कंपनी के इस फरमान से सभी इंप्लाई खुश हुए. सनडे आया और सभी ने जोर-शोर से इसकी तैयारियां की. उस व्यक्ति की ब्रांच के भी सभी इंप्लाई शहर के एक पुराने अनाथालय गए. वह खुद भी उनके साथ गया. दिन भर उन्होंने बच्चों के साथ अच्छा समय गुजारा. किसी ने बच्चों को कुछ सिखाया, कोई पढ़ाने में व्यस्त हो गया तो किसी ने उनके साथ मस्ती की. पूरा दिन बीत गया. कंपनी की तरफ से इस पूरे कार्यक्रम की मीडिया कवरेज भी कराई गई. अगले दिन अखबार में करीब-करीब पूरे पेज की कवरेज सामने आई. इस कवरेज में छपी सबसे बड़ी तस्वीर में बच्चे हाथ में गिफ्ट पैकेट लिए हुए थे और पीछे कंपनी के सभी कर्मचारी, जिसमें वो शख्स भी शामिल थे मुस्कुराते हुए खड़े थे.

सोमवार को ही उस शख्स के चाचाजी गांव से उनके यहां आए थे, उन्हें कुछ काम था. घर में वो शख्स अपने पूरे परिवार को अनाथालय की बातें बता रहा था. चाचाजी को भी अखबार दिखाया और बड़े गर्व से बताया कि कैसे उसकी कंपनी सामाजिक सरोकारों की तरफ भी ध्यान देती है. और इस तरह के कामों में बढ़चढ़कर हिस्सा लेती है.

चाचाजी ने अखबार की पूरी कवरेज ध्यान से पढ़ी. इसके बाद उन्होंने भतीजे से सवाल किया? बेटा ऐसा क्यों किया? भतीजे ने सोचा कि शायद चाचा जी समझ नहीं पाए. उसने कहा कि चाचाजी अनाथ बच्चों के प्रति भी तो समाज का दायित्व है. हमने उन्हें कुछ पल की खुशियां बांटीं बस यही कोशिश थी. इस पर चाचाजी ने पूछा- तो तुमने ऐसी कौन सी खुशियां उन बच्चों को दे दी, जो इतना बड़ा प्रचार कर रहे हो.

अचानक सब बदल गया. गर्व और खुशी से भरा भतीजा नि:शब्द चाचा को देख रहा था. फिर कुछ सोचते हुए बोला- चाचाजी ये कवरेज इसलिए है ताकि समाज के और लोगों को प्रेरणा मिले. चाचाजी ने कहा कि बेटा नेकी कर दरिया में डाल वाली बात कभी सुनी है. तुम और तुम्हारी कंपनी से बहुत पहले और आज भी ऐसे लोग हैं जो गुमनामी में रहकर ऐसे-ऐसे नेक कार्य कर रहे हैं, जिसकी आप कल्पना ही नहीं कर सके.

ये जो कार्य तुमने और तुम्हारी कंपनी ने किया है, इसे छलावा कहते हैं. ये ब्रांडिंग हैं. बच्चों के साथ दिन भर समय बिताया, कुछ गिफ्ट थमाया और पूरे शहर को बताया कि हमने नेक काम किया. कंपनियां अपनी ब्रांडिंग के लिए ये सब करती है. इसमें सामाजिक सरोकार जैसी कोई चीज नहीं है. तुम्हारी नौकरी है तो तुम भी इसमें शामिल हो लेकिन ये सिर्फ तमाशा है.

हां, अगर नेकी करना ही चाहते हो तो अपने आसपास के लोगों के जीवन की ही बेहतरी के लिए काम शुरू कर सकते हो. एक ढूंढो हजार मिलेंगे. लेकिन याद रखना कोई भी गरीब, अनाथ, निराश्रित या तकदीर से जूझता इंसान तुम्हारी दया का भूखा नहीं है. उसे तो बस अपनी जिंदगी की चुनौतियों से निपटने के लिए एक सपोर्ट की जरूरत है. वो दे सकते हो तो दो. और हां, इसका ढिंढोरा न पीटना क्योंकि जानते हो, अच्छाई के बहुत ठोस कदम होते हैं, वो जहां पड़ते हैं निशान जरूर छोड़ जाते हैं. और छलावाउसके हजार मुंह होते हैं, ये बस सिर्फ बवंडर ही खड़ा करता है. अब तय तुम्हें करना है कि ठोस कदम से आगे बढ़ना है या सिर्फ बवंडर खड़ा करना है.

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