क्यों हमें दूसरों से प्यार की कमी लगती है?
तो दोस्तों आपको
ऐसे लोग अपने ही आसपास जरूर दिखे होंगे. अब सवाल ये उठता है कि ऐसा क्यों? क्यों
हमें प्यार की कमी लगती है?
जानते हैं, क्यों सदियों से कहा जाता है कि
हर इंसान में भगवान बसते हैं. वो इसलिए कि आप खुद को जिस तरह
ढालेंगे, पूरा संसार अपने आसपास वैसा ही पाएंगे. जब आप सबको प्यार करेंगे तो सब आपको प्यार करेंगे? और
यकीन मानिए ये सच है. तो कहानी के अनुसार वो शख्स तो सभी से प्यार
करता है? फिर उसे क्यों ऐसा है कि उसे कोई प्यार नहीं करता?
और ये मां का प्यार
ही होता है जो बच्चा भी धीरे-धीरे ये मानने लगता है कि दुनिया की किसी भी परेशानी से उसकी मां
उसे बचा सकती है. चाहे सब उसके खिलाफ हो जाएं, मां उसके साथ ही रहेगी. तो बात सिर्फ इतनी सी है कि मां
का प्यार प्योर है… उसे अपने बच्चे से कुछ नही चाहिए,
वो तो बस बच्चे को ही खुश देखना चाहती है. वो जीवन
भर सिर्फ और सिर्फ अपनी ही बुनी प्रतियोगिता से जूझती रहती है. हर बार अपने बच्चे को और कितना बेहतर प्यार दे दे इसी को लेकर लालायित रहती
है. बदले में उसे कुछ नहीं चाहिए. दोस्तों
पिता भी इतना प्योर नहीं हो पाता. यही कारण है कि मां का दर्जा
सबसे ऊपर दिया जाता है,
कहने का मतलब सिर्फ
ये है कि वो शख्स जो अपने कर्त्तव्यों का बखूबी निर्वहन कर ही रहा है, सबके लिए कोशिश कर रहा है,
उसे बस ये ही सोचने की जरूरत है कि वो कितना प्यार दे सकता है?
न कि ये कि सामने वाला उसे बदले में कितना प्यार दे रहा है? अगर वो अपने प्यार और सामने वाले के प्यार की तुलना करेगा तो यकीन मानिए वो
दुखी ही होगा. क्योंकि ये मानव प्रकृति है… हम अपनी वकालत बहुत अच्छी करते हैं. अपनी गलतियों को
इग्नोर मार देते हैं या इधर-उधर के तथ्य या किस्से आदि जुटाकर
खुद को जस्टीफाई कर लेते हैं. लेकिन दूसरे की गलती पर पैनी नजर
रखते हैं.
तो अगर वो शख्स
जिन लोगों से खफा है, या दुखी है. उनका प्यार चाहता है… तो उसे सबसे पहले इस चाहत को ही भुलाना ही होगा… ये आसान
नहीं है दोस्तों, इसके लिए दृढ़ता लानी होगी. खुद को इस तरह ढालने की कोशिश करनी होगी कि जेहन में बस ये ही ख्याल रहे कि
वो सबको कितना प्यार करता है. उसे बस इसी से मतलब है.
बदले में क्या मिल रहा है, वो मायने नहीं रखता.
उसने जो सबसे धीरे-धीरे कटना शुरू कर दिया है या मिलना
छोड़ दिया है, उसमें उसे सुधार करना होगा. निर्विकार भाव से सबसे मिलना होगा. सबसे मुस्कुराकर…
खुले दिल से… अपनेपन के साथ मिलना होगा.
उसके अंदर किसी से शिकायत नहीं होनी चाहिए. यही
नहीं वो उनके लिए जो महसूस करता है, उसे भी खुलकर जाहिर करे.
चाहे अच्छा लगे या बुरा, अपनी बात जरूर रखे.
अब यहां उसका दिमाग जरूर कहेगा कि खुलकर बताया तो ये इंसान फिर कोई फायदा
न उठा ले. तो निश्चिंत रहिए भाई. आपके साथ
ऐसा नहीं होगा. आप खुलकर जीना तो शुरू कीजिए. सब खुलकर आपसे मिलेंगे.
यकीन मानिए दुनिया
में कोई शख्स ऐसा नहीं है जिसे प्यार नहीं चाहिए. दिक्कत बस ये है… जब खुद
दूसरे को प्यार देने की नौबत आती है तो सब थोड़े कंजूस हो जाते हैं. और दोस्तों यही कंजूसी ही अपना चक्र चलाती है और हमें दुनिया से जवाब में प्यार
में कंजूसी ही मिलती है.
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