क्यों हमें दूसरों से प्यार की कमी लगती है?

एक बेहद सम्पन्न परिवार के शख्स हैं. जीवन की सभी जरूरतें उनकी आसानी से पूरी हो जाती हैं. काम-धंधे के लिहाज से वो भी काफी सफल हैं. समाज में उनकी छवि भी अच्छी है. माता-पिता, पत्नी, बच्चे सब खुश दिखाई देते हैं. वो शख्स भी परिवार और समाज सभी जगह अपनी छवि अच्छी बनाए हुए है. लेकिन उसके अंदर हमेशा एक निराशा घेरे रहती हैं. उसे लगता है कि उसे कोई उतना प्यार नहीं करता. वो किसी भी दोस्त आदि को जितनी शिद्दत से चाहता है, उसे धोखा या चालाकी या कम तरजीह ही मिलते हैं. जब उसे किसी के साथ की जरूरत पड़ती है तो कोई नही होता. वह खुद अपनी क्षमता के हिसाब से सबके लिए बेहतर साबित होने की कोशिश करता है. चाहे दोस्त हो या परिवार सभी के लिए वह समय देने की कोशिश करता है. लेकिन उसे भी प्यार चाहिए, ये कोई नहीं समझता. उसे लगता है कि सब उसे बेवकूफ ही बनाते हैं. लाखों रुपए उसके अब तक इसी में जाया हो चुके हैं. समय बीतने के साथ ही धीरे-धीरे अब उसकी स्थिति कुछ ऐसी हो गई है कि परिवार और चंद करीबी लोगों के अलावा ज्यादातर लोगों से वह दूर होता जा रहा है. हमेशा उत्साह में रहने वाला वो शख्स अब कभी भी मिलता है तो अधिकतर खुद को विक्टिम ही दिखाने लगता है. काम भी उसका अब प्रभावित होने लगा है. वह आगे बढ़ने की बजाए अब काम चलते रहने की बातें करने लगा है. दिलचस्प ये है कि वो शख्स खुद भी अपने अंदर बदलाव महसूस करता है और लेकिन साथ ही ये कह देता कि जमाना ही ऐसा है क्या करें?

तो दोस्तों आपको ऐसे लोग अपने ही आसपास जरूर दिखे होंगे. अब सवाल ये उठता है कि ऐसा क्यों? क्यों हमें प्यार की कमी लगती है?

जानते हैं, क्यों सदियों से कहा जाता है कि हर इंसान में भगवान बसते हैं. वो इसलिए कि आप खुद को जिस तरह ढालेंगे, पूरा संसार अपने आसपास वैसा ही पाएंगे. जब आप सबको प्यार करेंगे तो सब आपको प्यार करेंगे? और यकीन मानिए ये सच है. तो कहानी के अनुसार वो शख्स तो सभी से प्यार करता है? फिर उसे क्यों ऐसा है कि उसे कोई प्यार नहीं करता?

ऐसे शख्स के लिए हमारा कहना ये है कि उसे कोई प्यार नहीं करता? ये सोचने की बजाएवो किसी को कितना प्यार करता है, इस पर गौर करना चाहिए. जानते हैं मां को महान क्यों कहा गया है? क्योंकि वो अपने बच्चे को आखिरकार अपनाती ही है. वो उसकी गलतियों को देखती और गलत जरूर कहती है, पर साथ ही आंचल में उसे ढकने की कोशिश भी करती है. इसमें बच्चे से कुछ भी चाहत नहीं है, बस बच्चे की चाहत ही होती है.

और ये मां का प्यार ही होता है जो बच्चा भी धीरे-धीरे ये मानने लगता है कि दुनिया की किसी भी परेशानी से उसकी मां उसे बचा सकती है. चाहे सब उसके खिलाफ हो जाएं, मां उसके साथ ही रहेगी. तो बात सिर्फ इतनी सी है कि मां का प्यार प्योर हैउसे अपने बच्चे से कुछ नही चाहिए, वो तो बस बच्चे को ही खुश देखना चाहती है. वो जीवन भर सिर्फ और सिर्फ अपनी ही बुनी प्रतियोगिता से जूझती रहती है. हर बार अपने बच्चे को और कितना बेहतर प्यार दे दे इसी को लेकर लालायित रहती है. बदले में उसे कुछ नहीं चाहिए. दोस्तों पिता भी इतना प्योर नहीं हो पाता. यही कारण है कि मां का दर्जा सबसे ऊपर दिया जाता है,

कहने का मतलब सिर्फ ये है कि वो शख्स जो अपने कर्त्तव्यों का बखूबी निर्वहन कर ही रहा है, सबके लिए कोशिश कर रहा है, उसे बस ये ही सोचने की जरूरत है कि वो कितना प्यार दे सकता है? न कि ये कि सामने वाला उसे बदले में कितना प्यार दे रहा है? अगर वो अपने प्यार और सामने वाले के प्यार की तुलना करेगा तो यकीन मानिए वो दुखी ही होगा. क्योंकि ये मानव प्रकृति हैहम अपनी वकालत बहुत अच्छी करते हैं. अपनी गलतियों को इग्नोर मार देते हैं या इधर-उधर के तथ्य या किस्से आदि जुटाकर खुद को जस्टीफाई कर लेते हैं. लेकिन दूसरे की गलती पर पैनी नजर रखते हैं.

तो अगर वो शख्स जिन लोगों से खफा है, या दुखी है. उनका प्यार चाहता हैतो उसे सबसे पहले इस चाहत को ही भुलाना ही होगाये आसान नहीं है दोस्तों, इसके लिए दृढ़ता लानी होगी. खुद को इस तरह ढालने की कोशिश करनी होगी कि जेहन में बस ये ही ख्याल रहे कि वो सबको कितना प्यार करता है. उसे बस इसी से मतलब है. बदले में क्या मिल रहा है, वो मायने नहीं रखता.

उसने जो सबसे धीरे-धीरे कटना शुरू कर दिया है या मिलना छोड़ दिया है, उसमें उसे सुधार करना होगा. निर्विकार भाव से सबसे मिलना होगा. सबसे मुस्कुराकरखुले दिल सेअपनेपन के साथ मिलना होगा. उसके अंदर किसी से शिकायत नहीं होनी चाहिए. यही नहीं वो उनके लिए जो महसूस करता है, उसे भी खुलकर जाहिर करे. चाहे अच्छा लगे या बुरा, अपनी बात जरूर रखे. अब यहां उसका दिमाग जरूर कहेगा कि खुलकर बताया तो ये इंसान फिर कोई फायदा न उठा ले. तो निश्चिंत रहिए भाई. आपके साथ ऐसा नहीं होगा. आप खुलकर जीना तो शुरू कीजिए. सब खुलकर आपसे मिलेंगे.  

यकीन मानिए दुनिया में कोई शख्स ऐसा नहीं है जिसे प्यार नहीं चाहिए. दिक्कत बस ये हैजब खुद दूसरे को प्यार देने की नौबत आती है तो सब थोड़े कंजूस हो जाते हैं. और दोस्तों यही कंजूसी ही अपना चक्र चलाती है और हमें दुनिया से जवाब में प्यार में कंजूसी ही मिलती है.

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