wo fir nahi aatey...
मौत के पंजों कि खरोंच डिब्बों पे देखके अब सहन नहीं होता
हे भगवन! इससे बेहतर तो तू सबको दिल का दौरा से मार देता
कोई मिटाने पे तुला है खुद को
तो कोई बचाने पे तुला है खुद को
कौन जीतेगा? जवाब सिर्फ वक़्त देगा
तब तक ये खेल चलता रहेगा, चलता रहेगा
न कुछ समझ में आता है
न कुछ दिल चाहता है
ये क्या हो गया
पिछली रात को हुआ था एक्सिडेंट
अब फिर रात होने को है
चारों तरफ पसरी मौत को रौशनी करके देख रहा हूँ
कहते है रौशनी जिंदगी लाती है
कम्बक्त ये लंप पोस्ट सिर्फ मौत को ही उजाला बाँट रहा है
देख ही तो सकता हूँ, कोस ही तो सकता हूँ
कर कुछ नहीं सकता
मौत तू इतनी बेदर्द क्यों है?
जिंदगी लेनी ही है न तुझे
सिर्फ इसके लिए तू कुछ भी कर गुजर सकती है
फिर, तुझमें और हम इंसानों में भला फर्क क्या रह गया
हम भी तो जिंदगी भर जिंदगी बचाने के लिए
कुछ भी कर गुजरते हैं...
एक-एक पल बटोरकर
जिंदगी बनाने कि कोशिश कर रही थी
एक-एक ख्वाब सजाकर
चलने की कोशिश कर रही थी
अचानक उस रात रास्ते में सैलाब आ गया
और जिंदगी मसलती चली गयी
देखो! अभी भी बाकी है मेरे पैरों के निशान
(सभी फोटो- अतुल हूँडू)
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