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Showing posts from March, 2010

nazar nazar me haaledil ka pata chalta hai

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------------------------------------------------- तुम मर गए लेकिन एक दास्ताँ कह गए ये वीराने बताते है कि हरे होते तो जिन्दा होते ------------------------------- --------------------------------------------------------- चुल्लू से जिंदगी संजोने कि कोशिश कर रहा हूँ  सारी उँगलियाँ जोड़ के रखी हैं  कमबख्त फिर भी सरकती जा रही है   --------------------------- -------------------------------------------- जिस इंसान ने मुझे इतने जख्म दिए चुन-चुन के हमले किये लहुलुहान पीठ लिए उसी इंसान के पैरों में बिछी  हूँ मैं धरती हूँ इंसान नहीं, जो बदले लेती फिरूं -----------------------  ------------------------------------------ मासूमियत कि कोई शक्ल नहीं होती काश हम इसे जानवर कि औलाद  न समझते    ----------------------------- ------------------------------------- मेरे चेहरे पे एक मुस्कान देखने को  माँ रोज न जाने कितने जतन करती होगी   ---------------------------- -----------...

khel khel me!!!

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-------------------------------------------- तुम दूर खडे देखा ही किये और डूबने वाला डूब गया तुम लज्ज़ते दरिया क्या जानो  तुम दिल का धरकना क्या जानो --------------------------- इस शानदार बारिश से भी बचने के लिए सिमटे जा रहे हो हर खुशी से शायद ऐसे ही बच निकलते होगे   एक लहर के इंतजार में दिन डूब गया, पर फिर भी डटा हूं और तुम कहते हो सफलता  का इंतजार करते-करते थक गया हूं ------------------------------------------------------ तेज लहरों से लड़ो तूफानों से टकराओ साहिल पे खड़े होके मंजिल नहीं मिलती -------------------------------- दो पल बैठ लें जरा फिर तो रेस शुरू हो जाएगी दो पल सोच लो जरा, फिर तो जिंदगी खत्म हो जाएगी जीत की इस कोशिश के बाद भी मुझे हार मिले तो गम नहीं कम से कम मैंने जीतने की कोशिश तो की अगर कोशिश ही न करता तो हार तो तय थी

wild-wild

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दुनिया का सबसे वफादार जीव कौन? कुत्ता 20 साल पालें फिर भी पलट के खा ले कौन? शेर इंसान क्या बनना चाहता है? शेर फिर भी कहता है मैं गद्दारी नहीं कर सकता....हाहाहा --------------------------------------------- हे भगवान! तूने मुझे शेर क्यों बना दिया दूसरों की जिंदगी तबाह करके ही मैं सत्ता हासिल कर सकता हूं दूसरों के बच्चे नहीं खाऊंगा तो अपने कैसे होंगे ये कौन सी सजा दे दी तूने अरे, मुझे भी इंसान बना देता, कम से कम मैं अपनी मर्जी से तबाही फैला पाता  जिसने उनके साथियों को चुन-चुन कर मारा परिजनों को काट-काट के खाया उनकी जिंदगी तबाह कर डाली उसी इंसान के चक्कर काट रही हैं ये मछलियां क्या कोई है ऐसा इंसान जो इतना 'बेवकूफ' हो सकता है पूरा समुद्र है अपना जमकर खेलो, जी भर कर खेलो  तू क्या मुंह बाए देख रहा है, इंसान तुझे भी तो दुनिया मिली है खेलने के लिए  तू ही दीवारों में फंसा है तो मैं क्या करूं क्या कुश्ती सिर्फ इंसानों को ही लड़नी आती है  यहां देखो ओपन फॉरेस्ट स्टेडियम में  दो पहलवान भालू लड़ रहे हैं, रेफरी भी है

population

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ये भीड़ आज की नहीं है सदियों से ये जीव यहां जुटते आ रहे हैं मौसम बदलेगा, रुखसती हो जाएगी मगर मजाल है कि इस तट को कोई फर्क पड़े ये जैसा था, वैसा ही बना रहेगा पर मेरा दावा है, एक इंसान यहां छोड़ दो और अगले साल इस तट में सदियों सा बदलाव देख लो जिस हीरे को तू प्यार की सौगात मानता है जिस हीरे को तू सफलता की निशानी मानता है वही हीरा जाने कितनों की मौत का कारण बन चुका है नहीं है यकीन तो जरा इस हीरे की खान को गौर से देखें सोचो, बर्फ की इस तैरती चट्टान पर बैठीं  इन पेंग्विन्स का दिमाग इंसानी हो जाए वादा है, थोड़े समय में बर्फ गायब हो जाएगी और पेंग्विन बोटहाउस में रहने लगेंगीं समुद्र इतना गंदा होगा, कि देखते ही बदबू आएगी पीछे दिख रही पहाड़ी में शॉपिंग काम्प्लेक्स की लाइटें चमक रही होंगीं यहां नेचर के अलावा सब कुछ दिखेगा

going wild

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इस सर्द समंदर में डूबने से अच्छा है चलो शिकार की लाश की कश्ती बना ली जाए वो शिकार भी करते हैं तो साथ मिलकर हम चाय भी पीते हैं अकेले-अकेले वो भूखे होते हैं तो ही हमला करते हैं हम सुकून में बैठे-बैठे हमले पर हमले करते रहते हैं उस 'जहां' की तलाश में हूं जहां से 'जहां' खत्म होता हो मुझे भी देखना है कि  खुद को खत्म होते देख 'जहां' कैसा महसूस करता है जिस ऊंचाई पर पहुंचने के लिए  हमें इतनी मेहनत करनी पड़ी ये परिंदा वहां झट से पहुंच जाता है हमारे पास पैर हैं तो उसके पास पर  सच है हर जीव की अपनी सीमा है पर इंसान को छोड़ हर जीव अपनी सीमा पहचानता है

अपनी आंखों के समंदर में उतर जाने दो!!!

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क्लास के बैक बेंचर्स में से एक हर टीचर से मस्ती करने में तेज पढ़ाकू स्टूडेंट्स पे जमी थी अपनी धाक नाम नोट करे, मॉनीटर की क्या औकात इंटरवल में गेंद ताड़ी से कईयों के गेंद चिपकाई कोई ऐसा नहीं, जिसकी कलम न हो निपटाई हर पल तो जीतता था मैं हर पल का सिकंदर था मैं कहां गए वो दिन, क्यों गए वो दिन बंदिशों को तोड़ फेंकने की हसरत जाग चुकी है जिंदगी को जीने की तलब जाग चुकी है कह दो उन हुक्मरानों से रोक सकें तो रोक लें हमने भी मौत से गुफ्तगू करने की आदत डाल ली है कभी किसी के घर में दिया नहीं जलाया कभी किसी की जिंदगी रौशन नहीं की अब याद आया तो मन को बहला रहा हूं इन बर्फ से बने घरौंदों को रौशन कर रहा हूं