मरने वाले का इतना तो हक है कि उसके 'अपने' अंतिम यात्रा में शामिल हों!!!
कोरोना के माहौल में सच बयां करती एक कहानी आपके सामने पेश है . ये सच्ची घटना पर आधारित है , ये कहानी है सोनू की . उम्र 40 साल है और पेशे की बात करें तो उसकी जान पहचान वाले उसे जुगाड़ू ही कहते हैं . वो इसलिए क्योंकि सोनू मौसम और माहौल के हिसाब से धंधा करता है . वो सब्जी से लेकर फल के ठेले लगवाता है . सर्दी का मौसम आता है तो अंडे के ठेले और मोमो आदि की खोमचे लगवाता है . सोनू अकेले दम पर करीब 8 परिवारों को चलाता है . ये 8 परिवार वो हैं , जो हर धंधे में उसका साथ देते हैं . कोरोना काल आया तो पूरा धंधा ठप हो गया है . सोनू घर में पड़ा है . रोज टीवी , मोबाइल हर जगह कोरोना को लेकर चीत्कार सुनता है . हर तरफ सिर्फ कोरोना की बातें . सुनते - सुनते वो इतना डर गया कि अपने एक कमरे के मकान में ही दुबक गया . कई दिन ऐसा ही चला . उसके पूरे मोहल्ले में भी यही हाल था . इस बीच सोनू के जानने वाले एक परिवार में कोरोना से शख्स की मौत हो गई . स्थिति ये हुई कि सूचना देने के बाद भी कोई शव को उठाने नहीं आया . उस व्यक्ति का परिवार बिलखता रहा और दुखद ये था कि कोरोना के डर से उसने भी शव को घर से बाहर गली में रख दिय