चकल्लस- काला धन, रामदेव, संघ और सरकार



बिंदास- क्यों भाई फोन क्यों नहीं उठाते. 

रोडी- अरे क्या उठाएं, वही अपने डॉक्टर साहब हैं. 

बिंदास- कौन?

रोडी- अरे वो हैं नहीं, पैथॉलॉजी की दुकान भी खोले हैं और ज्ञान भी बहुत पेलते हैं. एक मिनट के लिए बैठो, दुनिया भर का ज्ञान बाल्टी भर-भर के उड़ेलने लगते हैं. अफनाहट होने लगती है, इतने ज्ञान से. उन्हीं का फोन है, उठा लिया तो समझो अपनी शाम हुई. 

बिंदास- अरे उठा लो, नहीं तो वैसे भी यहां क्या उखाड़ोगे. कम से कम फोन ही सुन लो, कुछ काम तो करोगे. 

रोडी- लेओ तुम्ही पकड़ो, झेलो इन्हें, बहुत खुजली हो रही है न. 

बिंदास- अबे खुजली से याद आया, आजकल दुनिया भर को खुजली हो गई है. जिसे देखो भ्रष्टाचार-भ्रष्टाचार खुजला रहा है.

रोडी- हाहाहा शुरू हुए तुम. 

बिंदास- अबे सुनो तो, पिछले महीने याद नहीं है, अन्ना चाचा कैसी गदर मचाइन था. साला लगा कि इंडिया भी मिस्त्र बन जाएगा. नेहरू की तरह गांधी बने मंच पर ऐसे बैठे थे अन्ना, कि दुनिया साफ करके ही रिलैक्स होएंगे. कांग्रेस ने ऐसा निपटाया कि अन्ना की आंधी कब सुहानी हवा बनी और गुम हो गई, पता ही नहीं चला. अब उनके सिपहसालारों पर कांग्रेस एक-एक करके नकेल कसने में लगी है. सब ठीक होने लगा था. अचानक बाबा रामदेव के भ्रष्टाचार खुजलाने लगा. कहिन आमरण अनशन. कांग्रेस फिर सकपकाई. अमां अभी एक को कंट्रोल कर ही रहे थे कि ये दूसरी लकड़ी खड़ी हो गई. प्रधानमंत्री ने अपनी टीम के नल और नील यानी कपिल सिब्बल और सुबोध कांत सहाय को छोड़ दिया बाबा के पीछे. बाबा, डाल-डाल तो वो पात-पात. इधर सेटिंग फैलाते, उधर मीडिया को जानकारी देते जाते. पहले देखो मीडिया में खबर आई कि बाबा के साथ सरकार की डील हो गई. अनशन शुरू हुआ और रात होते-होते सरकार ने ऐलान कर दिया कि बाबा तुम्हारी हर बात मानी. लेकिन इसके साथ ही मीडिया में खबर भी आने लगी ये तो कल ही तय हो चुका था. बस बाबा बमक पड़े. धोखा-धोखा चिल्लाने लगे. कहिन, सिब्बल से कभी बात नहीं करूंगा. सिब्बल न हुए, महबूब हो गए कि जाओ मैं तुमसे नहीं बात करूंगी. अमां, जाओ भाई मत बात करो. उसकी तो नौकरी ही यही है, हर जगह टांग अड़ाना और धीरे से निकल लेना. 

रोडी- अमां, सिब्बल तो फिर ठीक लेकिन ये भइया दिग्विजय सिंह का इलाज करवाओ. कोई बात हो, भाई तुरंत एक झन्नाती हुई बौद्धिक दे देते हैं. सबसे ज्यादा आरएसएस और भाजपा के लकड़ी करने में उन्हें मजा आता है. आज कह दिहिन, संघ और भाजपा हैं बाबा के पीछे. 

बिंदास- हां, हां, शहनवाज हुसैन का बयान देख रहा था. पूछ रहे थे कि दिग्विजय बताएं कौन हैं उनके पीछे. हमने कहां लेओ इनको पता ही नहीं, सोनिया चाची. 

रोडी- वैसे अन्ना के आन्दोलन से ज्यादा भीड़ जुटाई है बाबा ने. 

बिंदास- अबे जुटेगी कैसे नहीं. अन्ना बेचारे गरीब. अनशन पर बैठे थे चुपचाप. वो तो उस समय वल्र्डकप खत्म हुआ था और दो बार भारतीयों के सड़क पर निकलने की प्रैक्टिस हो गई थी. खबर आई अन्ना भ्रष्टाचार खत्म करने निकले हैं. भाई लोग चकल्लस में सड़क पर उतर पड़े, कहिन हम भी खत्म करेंगे, भईया भ्रष्टाचार हम भी खत्म करेंगे. 

रोडी- हाहाहहाहा, और तो और भाई मोहल्ले के जितने भ्रष्ट थे, साले सभी मोमबत्ती खरीद-खरीद जीपीओ पर बैठे दिखे. 

बिंदास- हां, अपने बाबा ऑर्गनाइज्ड हैं, इतने साल भीड़ जुटा-जुटाकर योग सिखाया है, अब भीड़ जुटा आन्दोलन कर रहे हैं. मंच के आसपास कूलर, एसी भी लगवा लिहिन हैं. सुना है वाशिंगटन में भी कई एनआरआई उनके लिए व्रत हैं. लेकिन लिख लेओ, कांग्रेस इनको भी खा जाएगी, देख लेना, ऐसे नहीं ६० साल से राज कर रही है गुरू. हाहाहाहा, कुछ समय बाद बाबा जब किसी लायक नहीं रह जाएंगे तो हम-तुम चलेंगे उनके पास और कहेंगे, भूल जाओ बाबा सब कुछ, चलो योगा करते हैं. 

रोडी- वैसे यार रामलीला ग्राउंड में जिस तरह से पुलिस ने हऊका, उसके बाद बाबा पहली प्रेस कांफ्रेंस में सकपकाए दिखे, रो भी दिहिन. पर शाम होते-होते फिर से एनर्जी से भर गए. उधर भाजपा भी जिस तरह उनका साथ दे रही है, मुझे तो लगने लगा है कि रामदेव के पीछे दिमाग संघ का है. मानो या न मानो. 

बिंदास- आम आदमी की तरह न सोचा करो. इतने साल से राजनीति की खबरें पढ़ रहे हो राजनीति थोड़ी बहुत तो समझा करो. तुम बिलकुल सही हो, मैं बस तुम्हारी इस सोच को और साफ किए देता हूं. देखो, वापस २००९ में सोचो, विदेशों में पड़े काले धन की बात किसने कही थी. याद आया लालकृष्ण आडवाणी लखनऊ आए थे. यहीं मुंशी पुलिया में रैली करके काले धन की बात कही थी. चुनाव में ये मुद्दा बन नहीं पाया और भाजपा विपक्ष में ही रही. दरअसल, आडवाणी को यह मुद्दा संघ ने दिया था. भाजपा के इस मुद्दे से कोई लाभ न मिलने पर संघ ने नया पैंतरा अपनाया. बाबा रामदेव को पकड़ा. अबे बाबा, उसी संघ के खड़े किए हुए ही तो हैं. दुनिया में संघ जैसा नेटवर्क किसी का नहीं है. ऐसे ही थोड़े कांग्रेसियों से लोहा लेते हैं संघवाले. हां, तो चुनाव के बाद बाबा ने ये मुद़्दा पकड़ा और उसके साथ भारत में १००० और ५०० के नोट बंद करने की वकालत की. इस दौरान बाबा ने ऐलान किया कि अपनी अलग पार्टी बनाएंगे. गुरू ये बयान सिर्फ नाटक था, ताकि  संघ की जिस सोच को वो आगे बढ़ाएं, उससे वो लोग भी जुड़ें, जो संघ से नफरत करते हैं. तो बाबा के योग शिविर धीरे-धीरे आरएसएस की शाखाओं में तब्दील होते गए. पहले बाबा योग कराते, फिर जनता को भ्रष्टाचार के खिलाफ एकजुट करते. सब ठीक चल रहा था गुरू और सच बताऊं तो  मिशन २०१४ यही था भाजपा बोले तो आरएसएस का. लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था. अचानक से अन्ना चाचा कहीं से टपक पड़े, अप्रत्याशित रूप से पब्लिक उनके साथ हो ली. पहले संघ और भाजपा फिर बाबा ने अन्ना के साथ टांग अड़ाने की कोशिश की लेकिन कोई फायदा नहीं निकला. देखे नहीं, उस समय बाबा कितने तमतमाए से दिख रहे थे. जाहिर है संघ और बाबा की इतनी बड़ी गणित खराब हो रही थी. पर कांग्रेसियों की पुरानी आदत संघ को पता थी, इसलिए संघ ने कहा शांत हो जाओ बाबा, महीने भर में मौका फिर मिलेगा. वही हुआ, कांग्रेसियों ने अन्ना और उनकी टीम को निपटाना शुरू किया और लोकपाल बिल में दूसरी ही खिचड़ी बनती नजर आने लगी, बस बाबा ने चोट कर दी. 

रोडी- इतना ज्ञान लाते कहां से हो बे, पता नहीं ये सच है या नहीं. पर साले बताते ऐसे हो, जैसे तुमसे पूछकर ही सब कर रहे हैं. 

बिंदास- अबे तुम लोग मेरी कीमत अभी समझते कहां हो, वक्त अपना भी आएगा गुरू. एक नेता मिलने दो, फिर बताता हूं, प्रधानमंत्री न बनवा दिया दिमाग से तो मैं भी बिंदास नहीं. 

रोडी- लेकिन भाई अगर तुम्हारी गणित सच है, तो बाबा तो गए काम से. 

बिंदास- काम से कहां गए, अबे हम हैं न चलेंगे, उनके पास कहेंगे, बाबा चलो फिर से योगा करते हैं. तब तक गुरू मजा लेओ सरकार और बाबा के गेम का. 

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