‘याद रखना हम न तो भूलते हैं न ही माफ करते हैं.’


- पेशावर आतंक के बाद करुणा में डूबे एक देश को याद दिलाने की कोशिश

अजयेंद्र राजन


कुछ समय पहले मैंने एक मूवी देखी थी, नाम था म्यूनिख. ये फिल्म उस देश की इच्छाशक्ति और कभी हार नहीं मानने के उन कदमों को रेखांकित करती है, जिसमें वह आतंकियों के घर फूल भेजता है और लिखकर देता है, ‘याद रखना न हम भूलते हैं न ही माफ करते हैं.’
 ये उस देश की कहानी थी, जिसने आतंकवाद का दंश हमारी तरह ही झेला और आज भी झेल रहा है लेकिन वह भावनाएं किनारे रखकर पूरी रणनीति और सजगता के साथ इसका मुकाबला कर रहा है. इजरायल. जी हां, चलिए आपको बताते हैं कि आतंकवाद से लड़ने की रणनीति और इच्छाशक्ति कहते किसे हैं, फिल्म के बाद विकीपीडिया से काफी तथ्य मिले, जिन्हें आपसे शेयर कर रहा हूं.
1972 के म्यूनिख ओलिंपिक्स में फिलिस्तीन के आतंकवादी संगठन ब्लैक सेप्टेंबर और फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (पीएलओ) के ग्रुप ने इजरायल की ओलिंपिक टीम के 11 सदस्यों को मौत के घाट उतार दिया. इसके जवाब में इजरायल ने मोसाद के निर्देशन में एक गुप्त ऑपरेशन शुरू किया, जिसे हम रैथ ऑफ गॉड (ईश्वर का कहर) या ऑपरेशन बायोनेट (ऑपरेशन कोप) भी कहते हैं. ऐसा माना जाता है कि ये ऑपरेशन 20 साल से ज्यादा समय तक चलता रहा.
इस ऑपरेशन पर दो फिल्में स्वॉर्ड ऑफ गिडियोन 1986 में और स्टीवन स्पीलबर्ग की म्यूनिख 2005 में बनाई गई.
तो ऐसा क्या था, इस ऑपरेशन में.आइए जानते हैं.
म्यूनिख नरसंहार के दो दिन बाद ही इजरायल ने जवाबी कार्रवाई करते हुए पीएलओ के सीरिया और लेबनान में दस ठिकानों पर बमबारी की. तत्कालीन प्रधानमंत्री गोल्डा मायर ने एक कमेटी ‘एक्स’ बनाई, चुनिंदा सरकारी अधिकारियों की इस कमेटी का लक्ष्य इजरायल की प्रतिक्रिया कब हो और उसका स्वरूप कैसा हो, इसका निर्धारण करना था. इस कमेटी की अगुवाई खुद प्रधानमंत्री, देश के रक्षा मंत्री मोशे दयान के साथ कर रही थीं. प्रधानमंत्री ने आतंकवाद से मुकाबले के लिए जनरल हारुन यारीव को एडवाइजर के तौर पर रखा, उनके साथ ही मोसाद के निदेशक ज्व्ही जमीर को ऑपरेशन के निर्देशन की पूरी जिम्मेदारी दी गई.
ये कमेटी आखिरकार इस निष्कर्ष पर पहुंची कि इजरायल के खिलाफ भविष्य में किसी भी हिंसात्मक कार्रवाई को रोकने के लिए म्यूनिख नरसंहार में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप में  शामिल प्रत्येक व्यक्ति की हत्या करना जरूरी है. इजरायली जनता और टॉप इंटेलिजेंस अधिकारियों के भारी दबाव के बीच प्रधानमंत्री मायर ने काफी बड़े कातिलाना अभियान के लिए हामी भर दी.
कमेटी का पहला टास्क म्यूनिख नरसंहार में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से शामिल लोगों की लिस्ट तैयार करना था. ये काम पीएलओ में मोसाद के खबरियों और मित्र यूरोपियन इंटेलिजेंस एजेंसियों के सहयोग से पूरा कर लिया गया. आखिरकार इस लिस्ट में 20 से 35 टार्गेट सामने आए, जिनमें ब्लैक सेप्टेंबर और पीएलओ के लोग शामिल थे. इस लिस्ट के बनने के बाद मोसाद को काम को अंजाम देने वाले शूटरों को तैयार करने का निर्देश दिया गया.
पूरी योजना में ‘प्रशंसनीय अस्वीकृति’ अहम किरदार थी, ताकि हत्याओं और इजरायल के बीच सीधा संबंध स्थापित करना असंभव हो जाए. यानी आतंकवादियों की हत्याएं करा तो इजरायल ही रहा है लेकिन इसे सीधे तौर पर साबित नहीं किया जा सकता.
यही नहीं इस ऑपरेशन का लक्ष्य फिलिस्तीनी आतंकवादियों को आतंकित करना भी था. मोसाद के पूर्व उप प्रमुख डेविड किम्श के अनुसार लक्ष्य बदला लेना नहीं था, बल्कि उन्हें आतंकित करना था. हम चाहते थे कि वे अपने कंधे के ऊपर देखें और महसूस करें कि हम उनके ऊपर हैं और इसीलिए हमनें सिर्फ उन्हें सड़क पर गोली नहीं मारी, क्योंकि ये तो आसान था.
ये माना जाता है कि मोसाद का एजेंट माइकल हरारी इस टीम को तैयार करने और निर्देशन देने में शामिल था, हालांकि इस टीम के कुछ सदस्य सरकार की जिम्मेदारी नहीं थे.
लेखक साइमन रीव मोसाद टीम के बारे में बताते हैं, जिसमें स्क्वॉयड के नाम हिब्रू में रखे गए. 15 लोग पांच स्क्वॉयड में बांटे गए.
इनमें एलेफ- दो पेशेवर हत्यारे थे.
बेट- एलेफ के दो गार्ड थे, जो उनके साथ साये की तरह रहते थे.
हेट- ये भी दो थे, इनका काम बाकी की टीम को कवर देना था, जिसमें होटलों के कमरे बुक करना, अपार्टमेंट की व्यवस्था करना, कार आदि शामिल है.
अइन- इसमें 6 से 8 एजेंट होते थे जो पूरे ऑपरेशन की रीढ़ होते थे. टार्गेट का पीछा करना और एलेफ व बेट स्क्वॉयड के लिए निकलने का रास्ता तैयार करना इनकी प्रमुख जिम्मेदारी थी.
क्योफ- ये दो एजेंट कम्युनिकेशन में एक्सपर्ट थे.
वैसे साइमन रीव द्वारा दी गई ये जानकारी मोसाद के पूर्व कात्सा (फील्ड इंटेलिजेंस ऑफिसर) विक्टर ऑस्त्रोव्स्की के मोसाद की अपनी हत्यारी टीम किडन के विेषण से काफी मेल खाती है. बल्कि ऑस्त्रोव्स्की ने अपनी किताब में लिखा भी है कि ये टीम किडन ही थी. इस बात का समर्थन लेखक गॉर्डन थॉमस भी करते हैं, जिन्हें उस रिपोर्ट को देखने का मौका मिला था, जो हत्या में शामिल आठ किडन और 80 लोगों की बैकअप टीम ने तैयार किया था.
लेखक आरोन क्लीन की एक अन्य रिपोर्ट कहती है कि ये टीमें वास्तव में एक यूनिट सीजारिया का हिस्सा थीं. ये यूनिट 1970 के मध्य में पुनगर्ठित होकर नए नाम किडन के साथ सामने आई थी. हरारी ने सीजारिया की तीन टीमों को कमांड किया, जिसमें से प्रत्येक में 12 सदस्य थे. ये बाद में लॉजिस्टिक्स, सर्विलांस और हत्यारे स्क्वॉयड में बंट गईं.
वहीं वेंजिएंस नाम की किताब में अलग ही बात कही गई है. इसमें लेखक ने बताया है कि उसके सूत्रों के अनुसार मोसाद ने पांच लोगों की एक ट्रेंड यूनिट बनाई थी, जिसमें उसका सूत्र भी शामिल था. इस टीम सीधे तौर पर सरकारी नियंत्रण में नहीं थी, उसका सीधा संपर्क सिर्फ हरारी से था. यह भी बताया गया कि हर हत्या के कुछ घंटे पहले टार्गेट के परिवार को फूल भेजे जाते थे, जिसमें एक कार्ड रहता था, जिसमें लिखा रहता था कि ‘याद दिला दें कि हम न तो भूलते हैं, न ही माफ करते हैं.’
गठित होने के महीने भर के अंदर टीम ने वेल ज्वेटर के रूप में पहली हत्या को रोम में अंजाम दिया. मोसाद के एजेंट्स उसका डिनर के बाद लौटने का इंतजार कर रहे थे और उन्होंने उसे 12 बार गोली मारी. शूटिंग के बाद वे अलग-अलग  हो गए और सुरक्षित ठिकानों की तरफ निकल गए. उस समय ज्वेटर इटली में पीएलओ का प्रतिनिधि था. इजराएल ने दावा किया कि वह ब्लैक सेप्टेंबर का सदस्य था और एल अल एयरलाइंस के खिलाफ फेल साजिश का हिस्सा था, हालांकि पीएलओ ने तर्क दिया था कि इसका सवाल ही नहीं उठता. पीएलओ के उप प्रमुख अबु इयाद के अनुसार ज्वेटर पूरी तरह से आतंकवाद के खिलाफ था.
मोसाद का दूसरा टार्गेट महमूद हमशारी था, ये पीएलओ का फ्रांस में प्रतिनिधि था. इजरायल मानता था कि ये फ्रांस में ब्लैक सेप्टेंबर का लीडर था. मोसाद ने एक एजेंट को इटैलियन पत्रकार बनाकर उसके सामने पेश किया और उसे पेरिस में अपने अपार्टमेंट से दूर किया ताकि टीम उसमें दाखिल होकर उसके डेस्क फोन में बम लगा सके. 8 दिसंबर 1972 को पत्रकार के रूप में एजेंट ने हमशारी को उसके अपार्टमेंट में फोन किया और पूछा कि क्या हमशारी बोल रहे हैं. जब हमशारी ने उधर से हां कहा तो एजेंट ने अपने साथियों को इशारा कर दिया और उन्होंने ब्लास्ट कर दिया. हमशारी हमले में बुरी तरह घायल हो गया लेकिन मरा नहीं और उसने पर्शियन जासूसों को पूरी जानकारी दे दी. कुछ हफ्ते बाद उसकी मौत अस्पताल में हो गई. हमशारी म्यूनिख हमले में शामिल था या नहीं, इसका कोई सबूत मोसाद ने कभी पेश नहीं किया.
24 जनवरी 1973 की रात जब साइप्रस की राजधानी निकोसिया में फतह के प्रतिनिधि हुसैन अल बशीर (जॉर्डेनियन) ने अपने ओलिंपिक होटल के कमरे की लाइटें बंद की तो कुछ पल बाद ही एक धमाका हुआ, जिसमें उसके साथ पूरा कमरा उड़ गया. मोसाद ने उसके बेड में बम लगाया था. इजरायल का मानना था कि वह साइप्रस में ब्लैक सेप्टेंबर का प्रमुख था, हालांकि उसकी हत्या के पीछे केजीबी से उसकी नजदीकियां एक कारण मानी गईं.
इसके बाद इजरायल को बासिल अल कुबैसी पर संदेह हुआ कि वह ब्लैक सेप्टेंबर को हथियार मोहैया कराता है और वह फिलिस्तीनी हमलों में शामिल रहा है. कुबैसी अमेरिकन यूनिवर्सिटी ऑफ बेरूत में लॉ प्रोफेसर था. 6 अप्रैल 1972 को उसे भी डिनर के बाद घर लौटते समय गोली मार दी गई. पिछली हत्याओं की ही तरह मोसाद के दो एजेंट ने उसे 12 बार गोली मारी.
मोसाद की लिस्ट में शामिल तीन टार्गेट लेबनान में भारी सुरक्षा के बीच रह रहे थे और अभी तक के हत्याओं के तरीकों से उन तक पहुंचना नामुमकिन था. इसलिए उनके लिए विशेष ऑपरेशन शुरू किया गया, जिसका नाम था ऑपरेशन स्प्रिंग ऑफ यूथ. ये रैथ ऑफ गॉड का ही सब ऑपरेशन था. 9 अप्रैल 1973 को साइरत मतकल, शायीतत 13 और साइरत जानहनिम के कमांडो लेबनान के समुद्री किनारे पर जॉडिएक स्पीडबोटों से पहुंचे, जिन्हें इजराइली नेवी ने मिसाइल बोट से भेजा था. ये कमांडो मोसाद के एजेंट द्वारा किराये पर ली गई कार से टार्गेट के पास तक पहुंचाए गए. कमांडो पूरी तरह नागरिकों के लिबास में थे, जिनमें से कुछ ने महिलाओं के वस्त्र पहन रखे थे. बेरूत में उन्होंने उस सुरक्षित बिल्डिंग पर हमला किया और मोहम्मद यूसुफ अल नजर (ब्लैक सेप्टेंबर का ऑपरेशन लीडर), कमाल अदवान (पीएलओ का चीफ ऑफ ऑपरेशन) और कमाल नासिर जो पीएलओ की एक्जीक्यूटिव कमेटी का सदस्य और प्रवक्ता था, को मार गिराया. ऑपरेशन के दौरान लेबनान के दो पुलिस अफसर, एक इटैलियन नागरिक और नजर की प}ी भी मारी गई. वहीं इजरायल का एक कमांडो घायल हो गया. छह मंजिला ये बिल्डिंग पॉपुलर फ्रंट फॉर द लिबरेशन ऑफ फिलिस्तीन (पीएफएलपी) का हेडक्वार्टर हुआ करती थी. इसके बाद सइरत जानहनीम के पैराट्रपर्स ने छह मंजिला इस बिल्डंग पर हमला किया, इस दौरान उन्हें भारी गोलीबारी का सामना करना पड़ा, जिसमें उनके दो जवान शहीद हो गए लेकिन आखिरकार वे बिल्डिंग पूरी तरह उड़ाने में सफल रहे. शइतत 13 के नेवल कमांडो और सइरत जानहनीम के पैराट्रपर्स ने इसके बाद पीएलओ के आयुध निर्माण फैक्ट्री और तेल के गोदामों पर भी हमला किया. इस कार्रवाई में 12 पीएलओ और 100 पीएफएलपी के सदस्य मारे गए.
इस लेबनान ऑपरेशन के फौरन बाद तीन हमले और किए गए. इनमें साइप्रस में हुसैन अल बशीर की जगह आए जाइद मुचासी को 11 अप्रैल को एथेंस होटल रूम में बम से उड़ा दिया गया. वहीं ब्लैक सेप्टेंबर के दो किशोर सदस्य अब्देल हमीन शिबी और अब्देल हादी नाका रोम में अपनी कार में घायल हो गए.
मोसाद के एजेंट इसके बाद अल्जीरिया में पैदा हुए और फ्रांस में ब्लैक सेप्टेंबर के ऑपरेशन का निर्देश कर रहे मोहम्मद बउदिया के पीछे लग गए. बउदिया अपने बहरूपिएपन और महिलाओं के प्रति आकर्षण के बारे में कुख्यात था. 28 जून 1973 को उसकी हत्या हो गई. मोसाद ने उसकी कार की सीट में बम लगाया था.
15 दिसंबर 1979 को दो फिलिस्तीनी अली सलेम अहमद और इब्राहिम अब्दुल अजीज की साइप्रस में हत्या हो गई. पुलिस के अनुसार दोनों को बेहद करीब से गोली मारी गई.
17 जून 1982 को पीएलओ के दो वरिष्ठ सदस्यों को इटली में अलग-अलग हमलों में मार दिया गया. इनमें पीएलओ के रोम ऑफिस में प्रमुख माना जाने वाला नाजे मेयर को उसके  घर के बाहर मारा गया, वहीं इसी दफ्तर में उप निदेशक कमल हुसैन को उस समय कार में लगे बम से उड़ा दिया गया, जब वह कुछ घंटे पहले ही मेयर के घर से लौटा था और पुलिस को मामले में कई जानकारियां दी थीं.
23 जुलाई 1982 को पेरिस में पीएलओ के दफ्तर में उप निदेशक फदल दानी को कार बम से उड़ा दिया गया. इसके बाद 21 अगस्त 1983 को पीएलओ का सदस्य ममून मेराइश एथेंस में मार दिया गया. उसे मोसाद के मोटरसाइकिल सवार दो एजेंटों ने कार में गोली मारी.
10 जून 1986 को ग्रीस की राजधानी एथेंस में पीएलओ के डीएफएलपी गुट का महासचिव खालिद अहमद नजल मारा गया. नजल को सिर में चार बार गोली मारी गई. 21 अक्टूबर 1986 को मुंजर अबु गजाला, जो कि पीएलओ की एक वरिष्ठ सदस्थ्य था और फिलिस्तीन की राष्ट्रीय काउंसिल की सदस्य था, को एथेंस में कार बम से उड़ा दिया गया.
14 फरवरी 1988 को साइप्रस के लीमासोल में एक कार बम धमाका हुआ, जिसमें फिलिस्तीन के अबु अल हसन कासिम और हमदी अदवन की मौत हो गई, वहीं मरवन कानाफामी घायल हो गया.
मोसाद लगातार अली हसन सलामेह के पीछे लगी थी, जिसे रेड प्रिंस के नाम से भी जाना जाता था. इजरायल का मानना था कि सलामेह फोर्स 17 का प्रमुख था और म्यूनिख नरसंहार में शामिल ब्लैक सेप्टेंबर का हिस्सा था. हालांकि इस बात का खंडन ब्लैक सेप्टेंबर के अधिकारी करते हैं. उनका कहना था कि हालांकि सलामेह यूरोप में कई हमलों में शामिल था लेकिन उसका म्यूनिख की घटना से किसी भी तरह का कोई संबंध नहीं था.
करीब साल भर की कोशिश के बाद मोसाद को एहसास हुआ कि उन्हें आखिरकार सलामेह का पता चल गया है. वह नार्वे के एक कस्बे लिलीहैमर मे था. 21 जून 1973 का दिन, जो आगे चलकर लिलीहैमर मामला के नाम से चर्चित हुआ, मोसाद के एजेंटों ने इसी दिन अहमद बुशिकी की हत्या कर दी, मोरोक्को मूल के इस वेटर का म्यूनिख हमलों से कोई लेना-देना नहीं था, टीम को उसके सलामेह होने की गलत जानकारी मिली थी. मामले में मोसाद के 6 एजेंट, जिनमें दो महिलाएं भी शामिल थीं, को स्थानीय पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. वहीं टीम लीडर हरारी बाकी सदस्यों के साथ इजरायल निकलने में कामयाब रहा. पकड़े गए 5 लोगों को हत्या का दोषी माना गया और उन्हें सजा हुई लेकिन वे बाद में 1975 में रिहा हो गए और इजरायल लौट आए. विक्टर ओस्त्रोव्स्की का दावा है कि सलामेह ने ही अपने बारे में गलत जानकारियां मोसाद तक पहुंचवाई थीं.
1974 में जानकारी मिली कि 12 जनवरी को सलामेह स्विटजरलैंड के एक चर्च में पीएलओ के नेताओं से मिलने वाला है. सूचना पर मोसाद के एजेंट्स को फौरन स्विटजरलैंड भेज दिया गया. मीटिंग के दौरान दो हमलावर चर्च में दाखिल हुए और उन्होंने अपने सामने तीन अरब नागरिक देखे. ये तीनों मार दिए गए. मोसाद के एजेंटों ने पूरे चर्च में सलामेह को ढूढ़ा लेकिन वह नहीं मिला. आखिरकार मिशन को वहीं छोड़कर उन्हें वहां से निकलना पड़ा.
उसके कुछ दिन बाद ही मोसाद के तीन सदस्य लंदन पहुंचे, जहां उन्हें एक सूत्र ने सलामेह के बारे में जानकारी देने की बात कहकर बुलाया था. जब वह सूत्र नहीं मिला तो टीम को शक हुआ कि उन पर भी नजर रखी जा रही है. इस दौरान एक महिला हमलावर ने एक एजेंट को होटल में बहकाया और उसक हत्या कर दी. तीन महीने बाद मोसाद टीम ने उस महिला को जर्मनी के एम्सटर्डम शहर में लोकेट कर लिया और उसे उसके घर के पास 21 अगस्त को मार दिया गया. स्थानीय सूत्रों के अनुसार वह पेशेवर हत्यारिन थी और ये कभी खुलासा नहीं हो सका कि आखिर एजेंट को मारने के लिए उसे कांट्रैक्ट किसने दिया था. इस घटना के बाद किडन टीम के लीडर को फटकार पड़ी कि वह मिशन से इतर मामलों पर कार्रवाई कर रहे हैं. टीम के एक सदस्य ने कहा कि अधिकतर लोगों ने मारे जाने से पहले जान की भीख मांगी थी लेकिन इस महिला ऐसा कुछ भी नहीं किया. वह अलग थी. उसने कोई मांग नहीं की. उसने हमारी आंखों में आंखें डालकर देखा. उसकी आंखों में हमारे लिए बेहद नफरत थी. जब हमने उसे मारा तो उसके चेहरे पर कोई भाव ही नहीं था.
इस घटना के बाद ऑपरेशन कमांडर माइकल हरारी ने सलामेह को मारने के मिशन पर रोक लगाने का आदेश दे दिया. लेकिन किडन टीम ने इस आदेश की परवाह नहीं की और सलामेह को मारने की एक और कोशिश में तैयार होने लगी. उन्हें जानकारी मिली कि सलामेह इस समय स्पेन के तरीफा में एक घर में है. जब तीन एजेंट उसके घर के पास पहुंचे तो एक अरब सिक्योरिटी गार्ड से उनका सामना हो गया. वह जब तक अपनी एके-47 निकालता, एजेंट ने उसे मार गिराया. ऑपरेशन यहीं खत्म हो गया और टीम को वहां से निकलना पड़ा.
लिलीहैमर मामले के बाद बढ़े अंतर्राष्ट्रीय में प्रधानमंत्री गोल्डा मायर को रैथ ऑफ गॉड ऑपरेशन निलंबित करना पड़ा. मामले में मोसाद के एजेंट पकड़े जाने से यूरोप के उसके कई गुप्त ठिकानों, एजेंटों और ऑपरेशन के तरीके दुनिया के सामने आ गए. पांच साल बाद, नए प्रधानमंत्री मिनाशेम बेगिन ने ऑपरेशन फिर से शुरू कर दिया. 1978 के नवंबर में मोसाद ने सलामेह की जानकारी मिली. इसके बाद एक महिला मोसाद एजेंट ने खुद को एरिका चैम्बर्स बताते हुए ब्रिटिश पासपोर्ट के साथ लेबनान में प्रवेश किया, जो 1975 में जारी हुआ दिखाया गया था. उसने रूइ वरदुन में एक अपार्टमेंट किराये पर लिया, इस अपार्टमेंट की गली सलामेह लगातार इस्तेमाल करता था. इसके बाद कई और एजेंट वहां पहुंच गए. इनमें से दो ने छद्मनाम पीटर स्क्राइवर और रोलैंड कोलबर्ग लिए और वे ब्रिटिश व कैनेडियन पासपोर्ट पर लेबनान में दाखिल हुए. कुछ समय बाद उस अपार्टमेंट के बाहर प्लास्टिक विस्फोटकों से भरी एक फोक्सवैगन को खड़ा कर दिया गया. 22 जनवरी 1979 की दोपहर करीब 3 बजकर 35 मिनट पर सलामेह अपने चार बॉडीगार्ड के साथ शेवरले स्टेशन वैगन में सवार होकर गली में आया, इस दौरान अपार्टमेंट से रेडिया डिवाइस के माध्यम से फोक्सवैगन में विस्फोट कर दिया गया, जिसमें वैगन में सवार सभी मारे गए. आखिरकार पांच कातिलाना कोशिशों के बाद मोसाद सलामेह को मार गिराने में सफल रहा. हालांकि इस धमाके में चार निदरेष भी मारे गए, जिनमें एक ब्रिटिश नागरिक और एक जर्मन नन शमिल थी, वहीं 18 लोग घायल हो गए. हमले के फौरन बाद मोसाद के तीन अफसर अपनी 14 लोगों की टीम के साथ निकल गए.
उधर म्यूनिख नरसंहार के बाद में शामिल आठ आतंकियों में से तीन को जर्मनी ने गिरफ्तार कर लिया था. ये थे जमान अल गाशे, अदनान अल गाशे और मोहम्मद सफादी. 29 अक्टूबर को लुफ्तांसा की फ्लाइट 615 के हाइजैक के दौरान इन्हें छुड़ा लिया गया और ये छिपने के लीबिया पहुंच गए.
ये माना जाता है कि इनमें से अदनान अल गाशे और मोहम्मद सफादी को मोसाद ने नरसंहार के कुछ सालों बाद मार गिराया. अल गाशे का पता उस समय चला जब उसने खाड़ी देश में अपने चचेरे भाई से संपर्क किया. वहीं सफादी लेबनान में अपने परिवार से लगातार संपर्क में था. इस बात पर आरोन क्लीन सवाल उठाते हैं. उन्होंने लिखा ै कि अदनान 1970 में ही हृदयाघात से मरा, वहीं सफाद की हत्या लेबनान में क्रिश्चियन राजनीतिक दल ने 1980 में कराई.
हालांकि जुलाई 2005 में पीएलओ के दिग्गज तौफीक तिरावी ने क्लीन को बताया कि सफादी उनका करीबी मित्र है, और वह जीवित है.
जमाल अल गाशे उत्तर अफ्रीका में जाकर छिप गया और ये माना जाता है कि वह ट्यूनीशिया में रह रहा है. आखिरी बार 1999 में उसने एक डॉक्यूमेंट्री वन डे इन सेप्टेंबर के निदेशक केविन मैकडोनल्ड को इंटरव्यू दिया.
सीधे हत्याओं को अंजाम देने के साथ ही मोसाद ने कई अप्रत्यक्ष तरीकों का भी इस्तेमाल किया. इसमें यूरोप में फिलिस्तीनी अधिकारियों के खिलाफ लेटर बम का इस्तेमाल शामिल है.
इतिहासकार बेनी मोरिस लिखते हैं कि इन हमलों का लक्ष्य टार्गेट को सिर्फ घायल करना था, जिसमें उनकी मौत न हो. टार्गेट में अलजीरिया और लीबिया के लोग, बोन और कोपेनहेगन में सक्रिय फिलिस्तीनी छात्र कार्यकर्ता और स्टॉकहोम में रेड क्रेसेंट के लोग शामिल थे. क्लीन ये भी लिखते हैं कि काहिरा में एक हमले में बम ने काम नहीं किया, जिसमें दो फिलिस्तीनी टार्गेट बच गए थे.
मोसाद के पूर्व कात्सा विक्टर ऑस्ट्रोव्स्की दावा करते हैं कि इसके अलावा मोसाद मनोवैज्ञानिक युद्ध भी छेड़ चुका था, जिसमें जीवित आतंकियों को श्रद्धांजलि दी जा रही थी और उनकी सारी व्यक्तिगत जानकारियां उजागर की जा रही थीं.
ब्रिटिश इंटेलिजेंस लेखक गॉर्डन थॉमस लिखते हैं कि हर आतंकी की हत्या से कुछ घंटे पहले उसका परिवार फूल रिसीव करता था, जिसमें एक कंडोलेंस कार्ड भी होता था, जिसमें लिखा रहता था, ‘याद रखना हम न तो भूलते हैं न ही माफ करते हैं.’
थॉमस बताते हैं कि हर हत्या के बाद मोसाद का मनोवैज्ञानिक युद्ध के तहत ही मध्यपूर्व के अरबी भाषा के अखबारों को इसकी पूरी जानकारी लीक कर देता था.
रैथ ऑफ गॉड अभियान में कई और भी ऐसी हत्याएं और हत्या की कोशिशें हुईं, जिनमें संदेह है कि या तो मोसाद इसके पीछे था या फिलिस्तीन के ही अलग-अलग गुट. इसी तरह की एक हत्या 4 जनवरी 1978 को सैद हम्मामी की हुई. वह लंदन में पीएलओ का प्रतिनिधि था, उसे गोली मार दी गई. इसमें मोसाद के साथ अबु निदाल संगठन का नाम भी सामने आया. 3 अगस्त 1978 ाके पीएलओ के पैरिस ब्यूरो का चीफ एजेदीन कलक  उसका सहयोगी हमद अदनान भी अरब लीग बिल्डिंग में अपने दफ्तर में मार दिए गए. इस हमले में अरब लीग और पीएलओ स्टाफ के तीन अन्य सदस्य घायल हो गए. इसमें भी संदेह सामने आया कि या तो ये मोसाद ने किया या अबु निदाल संगठन ने.
27 जुलाई 1979 को पीएलओ मिलिट्री ऑपरेशन के हेड जुहैर मोहसेन की फ्रांस के कान्स शहर में हत्या कर दी गई. उन्हें उस समय गोली मारी गई, जब वह कैसिनो से निकल रहे थे. इस हमले के पीछे मोसाद के अलावा अन्य फिलिस्तीनी संगठनों और मिस्त्र का भी हाथ होने का संदेह हुआ.
1 जून 1981 को पीएलओ का ब्रुसेल्स में प्रतिनिधि नइम खादिर की हत्या हुई. पीएलओ के दफ्तर से इस हत्या के पीछे इजरायल का हाथ होने का दावा किया गया.
इसके बाद म्यूनिख हमले में शामिल होने की खुली घोषणा करने वाले ब्लैक सेप्टेंबर के कमांडर अबु दाउद को वारसॉ के एक होटल कैफे में गोली मार दी गई. 1 अगस्त 1981 को हुए इस हमले में दाउद बच गया. इस हमले में भी साफ नहीं हुआ कि इसके पीछे मोसाद था या अन्य फिलिस्तीनी संगठन. दाउद ने दावा किया कि हमले को फिलिस्तीन के गद्दार ने मोसाद के लिए अंजाम दिया, जिसे दस साल बाद पीएलओ ने मार गिराया.
फिर 1 मार्च 1982 में पीएलओ अधिकारी नबील वादी अरांकी की मैड्रिड में हत्या हो गई. इसी साल 8 जून को पीएलओ के इंटेलिजेंस के हेड आतिफ सेइसो को दो बंदूकधारियों ने पेरिस में मार डाला. हालांकि पीएलओ और आरोन क्लीन ने अपनी किताब में इस हत्या के पीछे मोसाद को ही दोषी ठहराया लेकिन अन्य रिपोर्टो में अबु निदाल संगठन का नाम सामने आया.
उधर आतंकियों ने भी जवाबी कार्रवाई की और इजरायल के कई अधिकारियों और संबंधित लोगों की हत्याएं की.
हो सकता है कि ऑपरेशन रैथ ऑफ गॉड को पढ़ने के बाद हम ये तर्क दें कि हिंसा का जवाब हिंसा नहीं होता. इस ऑपरेशन के बाद भी क्या आतंकवाद का खात्मा हो गया? क्या इजरायल पर आज भी आतंकी हमले नहीं हो रहे? तो मेरा व्यक्तिगत तौर पर मानना ये है कि बिलकुल सही कुछ नहीं बदला लेकिन ये भी सही है कि इजरायल जवाब दे रहा है, और उसी भाषा में दे रहा है, जिसे आतंकी समझते हैं. उसके नागरिकों को कम से कम ये सुकून जरूर है कि ये जो आतंकी हमले हो रहे हैं, ये उनकी सरकार की ही उस कार्रवाई के जवाब में हैं, जिसमें कई आतंकी मार गिराए गए. मैं भी ऐसे ही भारत में रहना चाहता हूं. बस.

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