दिल की ही सुनूंगा





ठोकर लगते ही समझ जाग सी जाती है
जिंदगी के हर पन्ने को ध्यान से समझने लगता हूं
कसम खाता हूं कि अब संभलकर चलूंगा
मगर कमबख्त बेसब्री ऐसी चीज है अंदर 
कि फिर सब भूल, दिल पर हाथ रखे कदम बढ़ा देता हूं
आज फिर एक ठोकर ने गिरा दिया है, 
फिर से समझ जाग उठी है
कहती है संभल जाओ, वरना बर्बाद होगे
कहीं छुपा बैठा मेरा दिल धीमे से फुसफुसाता है
अमां हटाओ, क्या खाक बर्बाद होउंगा, आज तक तो हुआ नहीं
तो कोशिश कर रहा हूं संभलकर उठने की, आगे चलने की
मगर मुझे पता है मैं फिर दिल की ही सुनूंगा
क्योंकि ये तो सच है कि आज तक तो मुझे कुछ हुआ नहीं...



Comments

Anamikaghatak said…
वह...बहुत अच्छा लगा
सच तो यह है की सुनी दिल की ही जाती है ..अच्छी प्रस्तुति
Minakshi Pant said…
मगर मुझे पता है मैं फिर दिल की ही सुनूंगा
क्योंकि ये तो सच है कि आज तक तो मुझे कुछ हुआ नहीं...
सुन्दर रचना आप दिल की ही सुनना दोस्त जी वो सच कहता है :)
Ajayendra Rajan said…
शुक्रिया आप सभी आदरणीय का...

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