भारतीय वैज्ञानिकों को आइना दिखाता हार्वर्ड का एक भारतीय छात्र


भारतीय विज्ञान कांग्रेस में पिछले दिनों जब हमारे देश के बड़े-बड़े वैज्ञानिक दावे कर रहे थे कि वैदिक युग में विमान दूसरे ग्रहों तक जाते थे। गायें अपने भोजन से 24 कैरेट सोना बना सकती हैं। मंगल ग्रह पर महाभारत युग के हेलमेट मिले हैं। पाइथोगोरस के सिद्धांत ग्रीस में नहीं भारत में बने थे। प्राचीन भारत में पानी में शव रखकर पोर्स्टमार्टम किए जाते थे। महर्षि भारद्वाज ने 7000 साल पहले विमान संहिता लिखी। प्राचीन रडार प्रणाली रूपार्कणरहस्य कहलाती थी। 
दूसरी तरफ आपको हार्वर्ड विश्‍विद्यालय ले चलते हैं, जहां एक भारतीय छात्र कुछ ऐसे काम में अपना जीवन लगाने की तैयारी कर रहा है, जो हमारे तमाम वैज्ञानिकों, भारतीय सभ्‍यता पर घमंड करने वालों के लिए आइना दिखाने से कम नहीं। जी हां, रोहन मूर्ति नाम का ये शख्‍स हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में मूर्ति क्‍लासिकल लाइब्रेरी स्‍थापित करने जा रहा है और जानते हैं इस लाइब्रेरी में होगा क्‍या? इस लाइब्रेरी में हमारी भारत भूमि से जुड़े अलग-अलग भाषाओं में लिखे गए ग्रंथों, साहित्‍यों का संसार हाेगा। सिर्फ संस्‍कृत ही नहीं, तमिल, तेलेगु, मराठी और भी तमाम भाषाओं के ग्रंथ, जिन पर शायद ही हम भारतीयों को कोई ज्ञान हो। इस छात्र की कोशिश है कि हर भाषा में पूरा विश्‍व भारतीय साहित्‍य से रू-ब-रू हो। पिछले दिनों डेलीओडॉटइन वेबसाइट पर रोहन मूर्ति और उनके साथी शेल्‍डन पोलॉक को जानने का मौका मिला। मुझे लगा, अनुवाद का जो दुष्‍कर मगर ऐतिहासिक काम ये कर रहे हैं, तो इनकी बात हिन्‍दी में अनुवाद जरूर की जानी चाहिए। इंटरव्‍यू के लिंक के साथ अनुवाद पेश है-


भारतीय साहित्‍य शास्‍त्र को हमें क्‍यों पढ़ना चाहिए ?
http://www.dailyo.in/art-and-culture/what-the-murty-classical-library-aims-to-do/story/1/1542.html

रोहन मूर्ति
मैं हार्वर्ड में कम्‍प्‍यूटर साइंस का छात्र हुआ करता था लेकिन मैं हमेशा उससे परे चीजों पर जिज्ञासु रहता था। मैंने अपना ग्रैजुएशन पाणिनि के व्‍याकरण, न्‍याय और वेदांत के दर्शन में किया। इसी दौरान प्राचीन भारत में मेरी रुचि विकसित हुई। हार्वर्ड में मुझे लोएब लाइब्रेरी जाने का अवसर प्राप्‍त हुआ, जिसने ग्रीक और लैटिन किताबों को अंग्रेजी में अनुवाद कर पेश किया और क्‍ले लाइब्रेरी गया, जिसमें संस्‍कृत की किताबों का अनुवाद किया गया। वह शेल्‍डन पोलॉक मुख्‍य संपादक थे। मैं कुछ ऐसा ही करना चाहता था लेकिन क्‍या करना है, ये तय नहीं कर पा रहा था। फि‍र अक्‍टूबर 2009 में एक दोस्‍त ने मेरी मुलाकात पोलॉक से कराई। पोलॉक ने ही ये शानदार आइडिया सुझाया कि हम सिर्फ संस्‍कृत ही नहीं अन्‍य भारतीय भाषाओं में लिखे गए साहित्‍यों को भी अंग्रेजी में अनुवाद कर सकते हैं। और यहीं से हमारी यात्रा की शुरुआत हो गई।
हम हर साल कम से कम तीन से पांच किताबें पब्लिश कराना चाहते थे। करीब 36 किताबें हमने तैयार कर ली हैं, जिनके 48 संस्‍करण हैं। इन 36 किताबों में 12 शताब्‍दी की तमिल क्‍लासिक कंबन रामायण अगले साल सामने आएगी। इसके अलावा अंग्रेजी में हम पहली बार छठी सदी के शास्‍त्र भैरवी के किरातारजुनिया को भी प्रकाशित करेंगे। ये संस्‍कृत में किया गया बेहद कठिन लेकिन खूबसूरत काम है। हम गालिब की गजलें और उनके पत्रों सहित अन्‍य चीजें भी प्रकाशित करने जा रहे हैं।
अन्‍य कामों की बात करें तो जल्‍द ही हम तुलसीदास की रामचरितमानस, भरतचंद्र रे की आनंदमंगल, गुरु ग्रंथ साहिब और अन्‍य भाषाओं के शास्‍त्र जैसे अपभ्रंश, कन्‍नड्, प्राकृत और सिंधी भी प्रकाशित करने की तैयारी कर रहे हैं। ये संदर्भ हमने लोएब लाइब्रेरी से लिया है, जो पिछले सौ सालों से ये काम कर रही है।
हम युवा भारतीयों के सामने एक चुनाव का मौका देंगे। वे वर्ड्सवर्थ, शेक्‍सपियर, टीएस इलियट पढ़ते आए हैं। अब वे सूरदास और बुल्‍लेशाह भी पढ़ सकेंगे। जब बैंगलोर में मैं बड़ा हो रहा था तो मेरे पास ऐसा कोई ऑप्‍शन नहीं था। हमारी शैक्षिक व्‍यवस्‍था में हम बहुत ज्‍यादा भूतकाल में नहीं जाते न हीं पढ़ते हैं। हम बस 18वीं या 19वीं सदी तक जाकर ही रुक जाते हैं। हमें नहीं पता कि 1000 या 2000 साल पहले क्‍या हुआ। हम प्राचीन भारत नहीं पढ़ते। हमें ये एहसास नहीं है कि हमारी विरासत है क्‍या। शास्‍त्र हमें ये जानकारी देते हैं। वे हमें बताते हैं कि हम आखिर आए कहां से हैं और शायद जाएंगे कहां।
मूर्ति क्‍लासिकल लाइब्रेरी का सबसे अहम काम ये होगा कि हम भारत में और दुनिया भर में बिलकुल सटीक ग्रंथ मोहैया कराएंगे। उनका अनुवाद शत-प्रतिशत सही रखने की कोशिश की जा रही है। ताकि इस पर छात्र स्‍कॉलरशिप हासिल कर सकें।
हम इ-बुक्‍स पर भी काम कर रहे हैं। अभी इस पर चर्चा चल ही रही है। मैं चाहता हूं कि ये किताबें ज्‍यादा से ज्‍यादा लोगों तक पहुंचें। यही नहीं हमने नए प्रकार भी तैयार किए हैं, जो शिक्षण संस्‍थानों में मुफ्त में बांटे जाएंगे और चूंकि ये लाभ के लिए नहीं होंगे, लिहाजा वे इसके फॉन्‍ट इस्‍तेमाल कर सकेंगे। ये फॉन्‍ट हमें छपाई के पुराने तरीकों तक ले जाएंगे। हम खुशनसीब हैं कि ऐसे ही फॉन्‍ट डिजाइन करने के लिए दो असिस्‍टेंट हमारे पास हैं, लंदन में फि‍ओना रॉस और वैंकूवर में जॉन हडसन। उन्‍होंने एक अक्षर को तैयार करने में कई दिन लगा दिए हैं। यही नहीं उन्‍होंने ब्रिटिश लाइब्रेरी जाकर असल में पांडुलिपियों पर भारतीय शास्‍त्रों का अध्‍ययन किया, ताकि हमारी किताबें पुरानी शैली की लिखावट का प्रतिनिधित्‍व करें। इस तरह हमने 17 नए फॉन्‍ट डेवलप किए हैं।
मैंने इन किताबों को छापने के लिए हार्वर्ड के अपने पब्लिशिंग हाउस हार्वर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस को ही चुना क्‍योंकि उसके पास इस तरह के अनुवाद के प्रोजैक्‍ट पर काम करने का इतिहास है। उन्‍होंने हमें लोएब लाइब्रेरी की करीब एक सदी पुरानी किताबें तक मोहैया कराईं। उनके पास हर साधन के साथ सर्वश्रेष्‍ठ विद्वान मौजूद हैं। अगर मैं अपने जीवन का प्रत्‍येक दिन इस पर लगाऊं तो मैं इसे भारत के बाहर ही प्रकाशित करना चाहूंगा। लेकिन सच ये है कि मैं कोई विद्वान नहीं हूं। मैं वास्‍तव में इन किताबों का एक पाठक हूं। इसलिए मेरे लिए ये जरूरी है कि मेरे पास एक संस्‍था हो जो धन की व्‍यवस्‍था करे, संपादकों के साथ काम करे और किताब पब्लिश करे।
हम चाहते हैं ये श्रृंखला को भी खत्‍म न हो और काफी लंबे समय तक चलती रहे।

मूर्ति की लाइब्रेरी करना क्‍या चाहती है
शेल्‍डन पोलॉक
http://www.dailyo.in/art-and-culture/why-we-should-read-indian-classical-literature-ghalib-tulsidas-murty-classical-library/story/1/1541.html
  
मूर्ति क्‍लासिकल लाइब्रेरी ऑफ इंडिया में हम भारत की अमूल्‍य शास्‍त्रीय परंपरा को संजोना चाहते हैं, उसकी विविधता को पेश करना चाहते हैं। इसीलिए थेरिगाथा- पहली बौद्ध महिला की कविताएं, अबु फजल की अकबर का इतिहास, बुल्‍ले शाह के सूफी गीत, अल्‍लासनी पेड्डना की मनु की कहानी और सूरदास का सूरसागर को लांच किया गया।
साल 2010 में इस प्रोजैक्‍ट पर रोहन मूर्ति, मैंने और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ने काम किया। इसके अलावा कुछ विद्वान हमारी कई पसंदीदा किताबों पर काम कर रहे हैं। बाकी को हम शामिल कर चुके हैं। हम भारत की साहित्यिक दुनिया को दर्शाने की एक रील पेश करना चाहते हैं। हमारे पास दक्षिण भारत में तेलेगु के महान कार्यों के लिए अल्‍लासनी पेड्डन्‍ना हैं, 17वीं शताब्‍दी का महान पर्शियन इतिहास है, सूरसागर का सबसे पुराना संस्‍करण है और बौद्ध्‍ परंपरा के कई छिपे हुए शास्‍त्र हैं। जिनमें थेरिगाथा प्रमुख है, जो शायद आम युग से चार शताब्‍दी पहले का है।
हम संस्‍कृत से परे जाना चाहते हैं। हालांकि ये बहुत महत्‍वपूर्ण है कि दुनियाय जॉन क्‍ले की सोच को समझती है, न्‍यूयॉर्क के एक समाजसेवी, जिन्‍होंने क्‍ले संस्‍कृत पुस्‍तकालय की स्‍थापना की। संस्‍कृत का भारतीय भाषाई विविधता के सागर में अलग ही स्‍थान है। लेकिन घर पर कोई भी संस्‍कृत नहीं बोलता। संस्‍कृत के कवि अलग-अलग भाषाओं के हैं। संस्‍कृत को समझना असल में उस विविधता को समझना है।
मैं कन्‍नड़ पढ़ रहा था, जब मेरी मुलाकात रोहन और उनके खूबसूरत परिवार से हुई, उनकी मां सुधा मूर्ति और मेरी नवीं और दसवीं सदी के पुराने कन्‍नड़ पर काफी बातें हुईं और सुधा को इन शास्‍त्रों की अच्‍छी जानकारी भी है। ये हमारे लिए एक खूबसूरत, ऐतिहासिक, साहित्यिक और व्‍यक्तिगत प्रोजैक्‍ट की तरह है। मूर्ति लाइब्रेरी का लक्ष्‍य ये दिखाना है कि भारतीय साहित्‍य की दुनिया असल में कितनी धनी और विविधता से  परिपूर्ण्‍ है। संस्‍कृत उसका अहम हिस्‍सा है लेकिन संस्‍कृत ही उसका अंत नहीं है।
मैं भारतीय साहित्‍य 40 से ज्‍यादा सालों से पढ़ रहा हूं। और अभी भी उसकी कविता और कहानियों की जटिलता और विविधता वास्‍तव में दम भरने वाली हैं। हम आगे आने वाले सालों में इसका विस्‍तार दर्शन और विज्ञान तक करेंगे।
आपको सुनने में भले ही अविश्‍वसनीय लगे लेकिन हमें पूरा विश्‍वास है कि 100 साल के अंदर हमारे पुस्‍तकालय की अलग-अलग अलमारियों में 500 किताबें उसी तरह होंगीं, जैसी लोएब लाइब्रेरी में 500 किताबें ग्रीक और लैटिन अलारियों में हैं। और मैं ये आपको विश्‍वास दिलाता हूं कि हमारी किताबें ग्रीक और लैटिन किताबों से कहीं ज्‍यादा खूबसूरत और विविध होंगीं।
मूर्ति लाइब्रेरी किन किताबों का अनुवाद करेगी? भारत में लोग सादियों से अलग-अलग क्षेत्रों में साहित्‍य का पोषित करते आए हैं। उन्‍होंने पांडुलिपियों को सिर्फ आंख बंद कर नकल तैयार नहीं की है। उन्‍होंने उसे तौला है, आलोचना की है, अनुमान लगाया और प्राथमिकता के आधार पर किताबें लिखी हैं। यह कोरी कल्‍पना है कि ब्रिटिश लोगों ने भारतीय साहित्‍य को कसौटी दी या मूर्ति लाइब्रेरी एक नई कसौटी इजाद करने जा रहा है। भारत में लोग खुद साहित्‍य की कसौटी तैयार करते हैं और अपनी साहित्यिक विरासत के बारे में सोचते हैं। ऐसे ही लोगों का हमारा पहला ग्रुप है, जो अनुवाद करना चाहता है। इसके बाद अन्‍य काम होंगे, जिसमें इतिहास में हुई दुर्घटनाओं, अचानक घटने वाली घटनाओं का एक साहित्‍यक नक्‍शा तैयार किया जाएगा। जैसे थेरिगाथा, जिसमें पहली बौद्ध महिला के गीत हैं, ये दुनिया में महिला द्वारा तैयार किया गया पहला संकलना होगा। हम ऐसी किताबों को फि‍र से जीवित करना चाहते हैं, जिन्‍हें संस्‍कृति में कहीं भुलाया जा चुका है।
इन शास्‍त्रों से हमें पता चलेगा कि किस तरह से इंसान ने अपना जीवन जिया। जब हम ऐसे वाक्‍पटु मृत लोगों के बीच समय गुजारेंगे तो हमें एहसास होगा कि राजनैतिक, सामाजिक और सौंदर्य की दुनिया में इंसान के पास क्‍या-क्‍या संभावनाएं हैं। वर्तमान में हम जिस तरह जी रहे हैं, सिर्फ वही जीना नहीं है, उसके अलावा भी जिंदगी जीने के अलग तरीके हैं। आप देखें बुल्‍ले शाह अपने ही शिक्षक के सामने नर्तकी की तरह नाच रहे हैं। अगर आप भारतीय साहित्‍य संसार में डूबते हैं तो आपको स्‍वतंत्रता और विविधता मिलेगी।
मेरा सपना है कि इन सभी किताबों का डिजिटल वर्जन तैयार करना है, ताकि ये ज्‍यादा से ज्‍यादा लोगों तक पहुंच बनाए। आप सिर्फ एक क्लिक से बुल्‍ले शाह को पर्सो-अरबी लिपि में पढ़ सकें। एक बटन दबाते ही आप गालिब को आप देवनागरी में पढ़ सकें। लिपि की साम्‍प्रदायिकता, जो 20वीं सदी में सबसे ज्‍यादा महसूस की गई को सिर्फ एक बटन से खत्‍म किया जा सके। ये ही मेरा सपना है।
लेकिन चिंता का विषय ये है कि पूरी दुनिया में शास्त्रों को पढ़ने में माहिर विद्वानों की भारी कमी है। सिर्फ पुरानी मराठी को ही अंग्रेजी में अनुवाद करने लायक लोगों की बात करूं तो मैं उन्‍हें सिर्फ एक हाथ की उंगलियों पर गिन सकता हूं। इसी तरह दसवीं सदी की कन्‍नड़ को पढ़कर उसे पढ़ने लायक अंग्रेजी में अनुवाद करने लायक बनाने वाले लोग भी मेरी दो या तीन उंगलियों में समा जाएंगे। उम्‍मीद की किरण एक है कि जैसे-जैसे ये श्रृंखला आगे बढ़ेगी और जब किताबें दुनिया भर में अलग-अलग जगह पहुंचेंगीं तो ऐसे छात्र भी आगे आएंगे जो शास्‍त्रों की शिक्षा में अध्‍ययन करने को उत्‍सुक होंगे।




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