kuch idhar ki kuch udhar ki
देर से गूँजतें हैं सन्नाटे जैसे हम को पुकारता है कोई...गुलज़ार अब पर्वत बर्फ़ानी मत लिख अब नदिया में पानी मत लिख राज मगरमच्छ अब करते हैं मछली जल की रानी मत लिख काम-तृप्ति प्यार हुआ अब मीरा प्रेम दीवानी मत लिख इस पीढ़ी की एक ही ज़िद है इक भी बात पुरानी मत लिख भीगी हुई आँखों का ये मंज़र न मिलेगा घर छोड़ के मत जाओ कहीं घर न मिलेगा फिर याद बहुत आयेगी ज़ुल्फ़ों की घनी शाम जब धूप में साया कोई सर पर न मिलेगा रोज़ मेरे सीने पे लहरें नाबालिग़ बच्चों के जैसे कुछ-कुछ लिखी रहती हैं।