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manjiley apni jagah hai...rastey apni jagah

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मंजिले अपनी जगह है रास्ते अपनी जगह मैं भी तो देखूं तुम्हारी दूरबीन से कैसा दिखता है जहाँ, अरे, इससे तो इंसान गाजर-मूली दिख रहा है  अब समझ में आया तुम्हारी बेरहमी का राज! बड़ी कोशिश की तेरे शहर को मिटाने की लेकिन हर कदम के साथ नए निशान बनाता चला गया खाक में मिले घर के बाहर भी चैन की नींद ले लेता हूँ और तुम हो की गुलिस्तान में भी करवटे बदलते रात गुजरते हो खुद को बचाने की कोशिश है ये! खुद को बचाने की कोशिश है ये! अमां छोड़ो! खुद को मिटाने की कोशिश है ये अपने ही बनाये हथियार को खुद पर ही चलाता हूँ फिर खुद को ही हराकर जश्न मनाता हूँ मैं इंसान हूँ कोई मजाक बात है!!! इस अजनबी से शहर में जाना पहचाना ढूँढता है  आशियाना ढूंढता है