मोदी का स्‍मार्टनेस और सफलता हासिल करने का फलसफा कहीं खुशियों से दूर न कर दे!



इकोनॉमिक टाइम्‍स में आज ये आर्टिकल पढ़ा। अच्‍छा था। पूरा पढ़ा तो धीरे-धीरे एहसास हुआ कि बचपन से हम इन्‍हीं बातों के बीच ही जीते आए हैं। घर में कुछ ऐसे ही सुनने को मिलता रहा- बेटा तुम्हारा जिसमें मन लगता है, वही काम करना, बेटा दूसरों को प्‍यार दो, बड़ों को सम्‍मान, छोटों को खूब खुश रखो, गरीब को कभी खाली हाथ लौटने मत देना, अनुशासित रहो, नियमित रहो, चाहे कुछ भी हो जाए अपना नियम कभी मत तोड़ो। लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ती गई, इन बातों को हम पीछे छोड़ते जा रहे हैं। प्रैक्टिकल बनने के दौर में दौड़ लगा रहे हमारे जैसों के लिए ये आर्टिकल सोचने को मजबूर कर रहा है कि खुश होने का सार तो हर भारतीय बचपन से ही जानता है फि‍र क्‍यों उसे पीछे छोड़ता जा रहा है। हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी स्‍मार्ट वर्किंग और सफलता हासिल करने के नित नए नुस्‍खे बताते हैं। लेकिन क्‍या हमने ये कभी सोचा है कि किस विकास की दौड़ में शामिल हो चुके हैं हम? जिस स्‍मार्टनेस और सफलता को पश्चिम ने हासिल कर लिया और अब अंग्रेजी में उसके साइड इफेक्‍ट हमें बयां कर रहा है, क्‍या वही विकास हमें चाहिए। हम अपने बच्‍चों में वही स्‍मार्टनेस कूट-कूटकर तो नहीं भरते जा रहे, जो आखिरकार उन्‍हें खुशियों से ही दूर ले जाने वाली है। बेशक, घर में धूल खा रही गीता या रामायण उठा लें तो उन्‍हें पढ़ने से काफी ज्ञान मिलेगा, प्रधानमंत्री भी यही कहते हैं लेकिन चूंकि हमें अब उन्‍हें पढ़ने में भी शर्म आने लगी है या यूं कहें कि वह हमें समझ में नहीं आती। तो हमारे जैसे लोगों के लिए ये आर्टिकल काम का हो सकता है। हिन्‍दीभाषियों के लिए मैंने इसका अपने ज्ञान के अनुसार अनुवा‍द किया है। अंग्रेजी जानते हैं तो  नीचे के यूआरएल का इस्‍तेमाल कर सकते हैं।

http://blogs.economictimes.indiatimes.com/et-commentary/smart-successful-and-still-not-happy-heres-why/

By Raj Raghunathan
ऐसा क्‍यों है कि स्‍मार्ट या चतुर और सफल लोग उतना खुश नहीं होते, जितना कि वे हो सकते हैं या उन्‍हें होना चाहिए? विभिन्‍न अध्‍ययन के निष्‍कर्ष से तो यही पता चलता है। बल्कि एक बात अौर साफ हो जाती है कि स्‍मार्टनेस या सफलता और खुशी में पारस्‍परिक संबंध काफी छोटा सा ही होता है। इसी तरह शिक्षा या इंटेलिजेंस (आईक्‍यू) और खुशी में भी पारस्परिक संबंध काफी छोटा सा ही होता है। निष्‍कर्ष ये भी बताते हैं कि एक सीमा के बाद भौतिक सफलता और खुशी में पारस्परिक सबंध काफी छोटा हो जाता है। ये चौंकाने वाले तथ्‍य हैं क्‍योंकि हमारे समाज में माना तो यही जाता है कि स्‍मार्ट और सफल लोग ही जीवन के मुख्‍य लक्ष्‍य पाने में बेहतर होते हैं। जिसमें खुशी हासिल करना सबसे महत्‍वपूर्ण लक्ष्‍य है। हम तो यही सोचते हैं कि जो स्‍मार्ट और सफल है, वह बाकी लोगों की तुलना में कहीं ज्‍यादा खुश होगा। 
तो एेसा क्‍योंं है कि स्‍मार्ट और सफल व्‍यक्ति कम स्‍मार्ट और कम सफल लोगों की तुलना में उतना खुश नहीं है? और चूंकि भारत में इस समय बेहतर पढ़े-लिखों और धनवानों की संख्‍या में तेजी से इजाफा देखने को मिल रहा ताे जाहिर है ये सवाल काफी महत्‍वपूर्ण होता जा रहा है। 
एक व्‍याख्‍या ये भी हो सकती है कि जो चीजें इंसान को स्‍मार्ट और सफल बनाती हैं, वे उसकी खुशी के आड़े आती हैं। उदाहरण के लिए बेहतर बुद्धिमत्‍ता, जो स्‍मार्ट लोगों की विशेषता होती है, उसके कारण व़े अपने प्रयासों में अर्थहीनता के प्रति ज्‍यादा जागरूक होते हैं। जैसे, उपलब्धि की दौड़ में सफल लोगों के बारे में माना जाता है कि वे अपनी उपलब्धियां से कभी संतुष्‍ट नहीं होते। 
दूसरी व्‍याख्‍या ये है कि खुशी हासिल करने वालों की स्‍मार्टनेस और सफलता अलग होती है। जिसे हम स्‍मार्टनेस और सफलता मानते हैं, हो सकता है खुशी पाने वाले के लिए उसके अलग ही मायने हों। उसकी स्‍मार्टनेस और सफलता की परिभाषा ही अलग हो, जिसके बारे में हम जानते ही न हों।
 अब सवाल ये उठता है कि खुशी के सच्‍चे निर्धारक तत्‍व कौन से हैं? 
तो इसका जवाब संक्षेप में ये रहा। जीवन की बुनियादी जरूरतों रोटी, कपड़ा और मकान को हासिल करने के बाद हमें खुशी हासिल करने के लिए तीन चीजों की आवश्‍यकता होती है। पहली, हमें जरूरत होती है, उस एहसास की, जिसमें हमें लगता है कि हम किसी चीज में बहुत अच्‍छे हैं। वह डांस हो सकता है, पेंटिंग, टीचिंग या कुछ और। मतलब कुछ भी ऐसा, जिसमें हम खुद को बहुत अच्‍छा समझें। इस जरूरत को हम मास्‍टरी या दक्षता की संज्ञा दे सकते हैं। दूसरी बात, हमें कम से कम एक ऐसे व्‍यक्ति की जरूरत होती है, जिससे हमारा आत्मिक संबंध हो। इसे हम अपनापन नाम दे सकते हैं।  
और आखिर में हमें इस एहसास की जरूरत रहती है कि हम अपने निर्णय खुद ले सकते हैं। हमें ये एहसास चाहिए होता है कि हम किसी के अधीन नहीं हैं। इसे हम स्‍वायत्‍तता भी कह सकते हैं। 
आत्‍म निर्णय के सिद्धांत के क्षेत्र में की गईं तमाम रिसर्च ये बताती हैं कि खुशी के लिए सभी तीनों लक्ष्‍यों की महत्‍ता ज्‍यादातर लोगों ने कभी न कभी महसूस जरूर की। हालांकि हम जो गलती कर चुके होते हैं, उसमें स्‍मार्टनेस और सफलता भी शामिल हो जाती है, जिसका इस्‍तेमाल हमने लक्ष्‍य प्राप्ति के लिए किया होता है। हम मास्‍टरी हासिल करने के लिए दूसरों पर श्रेष्‍ठता साबित करते हैं। जिसके कारण सामाजिक तुलना में शामिल हो जाते हैं, चाहे वह प्रतिभा हो आर्थिक संपन्‍नता हो, खूबसूरती हो या कुछ और। और रिसर्च बताती हैं कि दूसरों से खुद की तुलना करना दुख हासिल करने का नुस्‍खा ही होता है। 
इसी तरह हम अपनी अपनेपन की इच्‍छा की पूर्ति के लिए चाहते हैं कि हमसे कोई प्‍यार करे। लेकिन इसी इच्‍छा के वशीभूत होकर हम ये चाहने लगते हैं कि दूसरे भी हमें प्‍यार करें ही और रिसर्च कहती हैं कि इस कारण से हमारी खुशियां कम होती जाती हैं। 
आखिरकार, हम अपनी स्‍वायत्‍तता की भावना को पूरा करने में लगते हैं। इसके तहत हम दूसरों पर नियंत्रण हासिल करने की चेष्‍टा करते हैं या परिणामों को नियंत्रित करने की कोशिश करने लगते हैं। एक बार फि‍र निष्‍कर्ष यही बताते हैं कि हालांकि नियंत्रण हासिल करने से सफलता में इजाफा होता है और आत्‍म सम्‍मान भी बढ़ता है लेकिन ज्‍यादा नियंत्रण से खुशियां कम होती जाती हैं। 
बात में पता चला कि मास्‍टरी या दक्षता, अपनापन और स्‍वायत्‍ता हासिल करने का एक और तरीका है, जो खुशियों के रास्‍ते में नहीं आता है।  इस रास्‍ते में दक्षता हासिल करने के लिए जुनून की खोज जरूरी है, अपनेपन के लिए प्‍यार करने की जरूरत है और स्‍वायत्‍तता हासिल करने के लिए आंतरिक नियंत्रण जरूरी है। अगर संक्षेप में कहें तो जुनून की खोज के लिए जरूरी है कि आप ऐसी चीजों या काम को महत्‍व दें, जिन्‍हें करने में आपको मजा आता हो। न कि ऐसे काम, जिनमें आपको धन, शोहरत या ताकत आदि ही मिलती हो।   
इसी तरह से प्‍यार पाने के लिए जरूरी है कि आप दयालु और करुणामय रहें। और ये जाहिर करने की जरूरत नहीं है कि ये किसी भी अन्‍य जरूरत से बड़ी है। रिसर्च बताती हैं कि हम अपनी बजाय जब दूसरों पर अपना धन खर्च करते हैं तो ज्‍यादा खुश महसूस करते हैं। 
आखिरकार आंतरिक नियंत्रण के लिए जरूरी है कि फायदे के साथ काम किया जाए, जिसे हम व्‍यक्तिगत दक्षता भी कह सकते हैं। दक्षता ऐसी, जो व्‍यक्ति अपने दिमाग और इच्‍छाओं पर हासिल करता है। जब कोई व्‍यक्ति जरूरी आंत‍रिक नियंत्रण हासिल कर लेता है तो वाह्य नियंत्रण करने की इच्‍छा अपने आप खत्‍म हो जाती है। जिसमें दूसरों पर नियंत्रण करना भी शामिल है। 
बहुत सारे लोग सहज ज्ञान से ही अपने जुनून की खोज कर सकते है। वे प्‍यार की जरूरत और आतंरिक नियंत्रण के कारण खुशियों के स्‍तर में काफी इजाफा कर सकते हैं। लेकिन वे इस बात को आसानी से समझ नहीं पाते कि वे भी सफलता के विश्‍वसनीय निर्धारक हैं। आप भी सफल हो सकते हैं अगर आप अपने जुनून की खोज करें, जिसे प्‍यार की जरूरत है उसे प्‍यार दें और आंतरिक नियंत्रण करें। 



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